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________________ (512) प्रत्येक भवमें नीच गोत्र कर्मबंध होता है / यह नीच गोत्र कर्म बंध बड़ी ही कठिनतासे छूटता है / राजा, मंत्री, पुरोहित आदि किसी की भी निंदा करना अनुचित है / इससे नरकादि दुर्गति भी मिलती है / इनमें भी राजा की निंदा करना तो महान् बुरा है। क्योंकि इससे प्रत्यक्ष में भी द्रव्य हरण, जेल आदि का दुःख उठाना पडता है और परोक्षमें तो नरकगति मिलती ही है। इस लिए कभी किसी को निंदा नहीं करना चाहिए। यदि निंदा करने का स्वभाव पड़ गया हो तो अपनी ही निंदा करना चाहिए। सातवाँ गुण अनतिव्यक्त गुप्ते च स्थाने सुप्रतिवेश्मकः / अनेकनिर्गमद्वारविवर्जित निकेतनः // भावार्थ -जिस गृहस्थ के घर में आने जाने के कई रस्ते नहीं होते हैं, वह गृहस्थ सुखी होता है। अनेक दर्वानों से परिमित द्वारवाले घर में रहना निश्चित होता है। इससे चोर, जारकी भीति भी कम रहती है। यदि घरमें अनेक दर्वाजे होते हैं, तो दुष्ट आदमी पीड़ा देते हैं / घर बहुत खुले मैदान में या बहुत गुप्त स्थान में नहीं होना चाहिए। यदि घर विशेष खुले मैदान में होता है तो चोरों को डर रहता है और यदि विशेष गुप्त स्थान में होता है तो उस घर की शोभा मारी जाती है।
SR No.023533
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1932
Total Pages578
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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