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________________ (511) पाँचवाँ गुण / ____ प्रसिद्ध देशाचारं समाचरन् / अर्थात् प्रसिद्ध देशाचार का आदर करना, मार्गानुसारी का पाँचवाँ गुण है। भोजन, वस्त्रादि का उत्तम व्यवहार जो चिरकाल से चला आ रहा है उसके विरुद्ध नहीं चलना चाहिए / विरुद्ध चलने से उस देशके निवासी लोगों के साथ विरोध होता है / विरोध होने से चित्त व्यवस्था ठीक नहीं रहती है। इसका परिणाम यह होता है कि, वह भली प्रकार से धर्मकृति नहीं कर सकता है। इसलिए प्रचलित देशाचार को व्यवहार में लाना चाहिए। छठा गुण / * अवर्णवादी न क्वापि राजादिषु विशेषतः। अर्थात-किसी का अवर्णवाद-निंदा-नहीं करना; विशेष करके रांना की निंदा न करना, मार्गानुसारी का छठा गुण है / छोटेसे ले कर बड़े तक किसी की निंदा नहीं करना चाहिए / निंदा करनेवाला निंदक कहलाता है ! निंदा करनेसे कष्टदायी कर्मों का बंध होता है। कहा है किः परपरिभवपरिवादादात्मोत्कर्षाच्च द्धयते कर्म / नीचेोत्रं प्रतिभवमनेकमवकोटिदुर्मोचम् // 1 // भावार्थ-निंदा दूसरों का नाश करनेवाली है / जो व्यक्ति दूसरे की निंदा करता है, और अपनी प्रशंसा करता है, उसके
SR No.023533
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1932
Total Pages578
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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