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________________ (499) हुए / राना, मंत्री, पुरोहित, सेनापति, सेठ, साहुकार आदि 18 वर्ण के लोग वहाँ एकत्रित हुए। राजाने पंडितों से पूछा कि"अब मुहूर्त की घडी में कितनी देर है ?" पंडितोंने उत्तर दियाः" महारान अब विशेष देर नहीं है; परन्तु एक बात की आवश्यकता है / यानी इसमें पाँच प्रकारके रत्नों की आवश्यकता है।" राजा-“ भंडार में बहुत से रत्न हैं।" पंडितोंने कहा:" महाराज ! यदि वे रत्न नीतिपूर्वक जमा किये हुए होंगे तो मुहूर्त की महिमा सदा कायम रहेगी, अन्यथा मुहूर्त का, चाहिए वैप्ता, प्रभाव नहीं रहेगा। " राजाने कहा:-"राजमंडार में सारे रत्न नीति के हैं / " पंडित बोले:-" महारान / राज्यलक्ष्मी के लिए पंडितों का और ही अभिप्राय है; इसलिए किसी व्यापारी के पाससे रत्न मँगवाईए / राना के आसपास हजारों साहुकार बैठे हुए थे। राजाने उनकी ओर देखा। मगर कोई रत्न देने को आगे नहीं आया / तब मंत्रीने कहा:-" रानप्रिय बनने का यह उत्तम अवसर है / जो नीति पुरस्सर व्यापार करते हों व आगे आवे / " मगर कोई आगे नहीं आया। क्योंकि वे सब अपनी स्थिति को और व्यापार नीति को जानते थे। वे जानते थे कि, हमने स्वप्न में भी नीति-व्यवहार नहीं किया है। सब मौनधारी मुनि की तरह चुप रहे। तब राजाने कहा:" क्या मेरे शहर में एक भी नीतिमान व्यापारी नहीं है !" राजाके वचन सुनकर, एक प्रामाणिक पुरुषने कहाः-" महाराज !
SR No.023533
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1932
Total Pages578
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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