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________________ ( 498) मनुष्य का मन आगापीछा करता है। वह यदि उसका उपभोग करता है तो लोग उस पर शंका करते हैं। वे कहते हैं, इसके पाम पहिले तो कुछ भी नहीं था। अब धन कहाँसे आगया ? अपडेलत्ते भी नये बनवा लिए हैं; जेवर भी करा लिया है। घर में भी नित्यप्रति अढाई कुड़छी खड़कती रहती है। इसस जान पड़ता है कि इसने जरूर किमी का माल माना है; या किसी को ठपकर लाया है / राजा जानता है, तो वह उसको दंड देता है। यदि किसीके पुण्य का जोर होता है तो वह इस लोक में निंदासे और राजदंड से बच भी जाता है; परन्तु भवांतर में तो उसको अवश्यमेव उसका कटुफल चखना पड़ता है; नरकादि का दुःख भोगना पड़ता है। अन्यायसंपन्न द्रव्य का नाश भी अन्याय माग में ही होता है / इस विषय में हमें एक राजा की कथा याद आती है ---- एक राजा को किला बनाने की इच्छा हुई। इसलिए उसने ज्योतिषी लोगों को बुलाया और कहाः --- " किले की बुनियाद डालने का एक उत्तम मुहूर्त बताओ। जिससे शुभ मुहूर्त में बना हुआ किला मुझको सुखदाई हो / वह सदा मेरी वंशपरंपरा के अधिकार में रहे और 21 पीढी उसमें आनंदपूर्वक निवास करें, राजतेज अखंड रहे।" न्योतिषियोंने उत्तमोत्तम मुहूर्त निकाल दिया। मुहूर्त के एक दिन पहिले नगर में घोषणा करवा दी गई / लाखों मनुष्य नियत स्थानपर आ जमा
SR No.023533
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1932
Total Pages578
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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