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________________ (475) असमीक्षितकारित्वं गुर्वादिष्वपमानता / इत्यादयो दृष्टिमोहस्यात्रवाः परिकीर्तिताः // 3 // भावार्थ-वीतराग, शास्त्र व धर्मविषय में और संघ के गुणों में अवर्णवाद करने से उनके विषय में अत्यंत मिथ्यात्व के परिणाम करने से; सर्वज्ञ, मोक्ष और देव का अभाव स्थापित करने से; धार्मिक पुरुषों के दूषण निकालने से; उन्मार्ग को बढ़ानेवाला उपदेश देने से, अनर्थ में आग्रह करने से, असंयमी की पूजा करने से वे सोचे कार्य करने से और देव, गुरु व धर्म का अपमान करने से दर्शनमोहनीय का आस्रव होता है। ____ चारित्रमोहनीय के दो भेद हैं / कषायचारित्रमोहनीय और नोकषायचारित्रमोहनीय / क्रोध, मान, माया और लोम के कारण आत्मा के अत्यंत कलुषित परिणाम हो जाते हैं वे चारित्र मोहनीय के कारण हैं और जो हास्य, रति, अरति, शोक, भय जुगुप्सा, स्त्रीवेद, पुरुषवेद और नपुंसकवेद इनको नोकषाय कहते हैं। इन्हीं के बंधहेतु नोकषायमोहनीय कर्म के आस्रव होते हैं। . अत्यंत हँसना, कामचेष्टा विषयक मसखदी करना, बहुत ठट्ठा करना, अतिशय बकवाद करना, और दीनवचन बोलना, हास्यनोकषायमोहनीय के बंधहेतु-आस्रव हैं / देश, विदेश देखने की उत्कट इच्छा करना, चौपाड़, ताश, शतरंज, आदि के खेल में मन लगाना, दूसरों को भी उसमें शामिल करना आदि रतिनोकषायमोहनीय मोहनीय के आस्रव हैं।
SR No.023533
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1932
Total Pages578
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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