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________________ (395 ) का समय आता है तब संबंध भी दूर हो जाता है। इसी विषय को पुष्ट करनेवाला एक उदाहरण और दिया जाता है। " एक कुटुंब में कर्मयोगसे एक बुढिया और उस का लड़का दो ही व्यक्ति बाकी बचे थे। उस समय माग्य-योगसे अपने चरणारविन्दसे पृथ्वीतल को पवित्र करते हुए; पंच महा व्रत पालक शुद्धोपदेश दाता, मुनिराज अन्य कई साधुओ के साथ उस नगर में आये जहां वह बुढिया और उस का लड़का रहते थे। लड़का धर्म देशना सुनने को गया / वह हल्के कर्मवाला था। इस लिए देशना सुनकर उसके मनमें वैराग्य का अंकुर आ गया। उस के मन में आया कि वह संसार छोड़कर साधु बन जाय / उसने मुनिराजसे अपने विचार कहे / मुनिरानने कहा:-बहुत अच्छे विचार हैं / तुम्हारे घर में कौन है ?" उसने उत्तर दियाः-" मेरे घरमें मेरी एक वृद्धा माता है।" मुनिश्रीने कहा:-" तुम अपने विचार अपनी माता के सामने प्रकट करो / यदि वह आज्ञा दे तो तुम हमारे पास आना / सुम्हारा कार्य सफल होगा।" मुनिश्री के वचन सुन, उन को नमस्कार कर, लड़का अपने घर आया और मातासे कहने लगाः-" माता ! आज मैंने जैनधर्म के साधुओंसे धर्मोपदेश सुना; वह मुझ को बहुत ही अच्छा लगा।" माताने कहाः" बेटा ! जिन वचन सदा ही मान्य हैं / तेरा अहो भाग्य है,
SR No.023533
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1932
Total Pages578
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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