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________________ (13) परोक्ष प्रमाण के पांच भेद हैं-(१) स्मरण (2) प्रत्यभि-. ज्ञान (3) तर्क (4) अनुमान और (6) आगम। १-संस्कारों के जागृत होने से अनुभूत पदार्थ का जो ज्ञान होता है, उसको 'स्मरण' कहते हैं। जैसे यह भगवान की वही प्रतिमा है जिसको मैंने अमुक स्थल में अमुक समय देखी थी। २-अनुभव और स्मृति रूप हेतुओं द्वारा तिर्यग्-ऊर्द्धता' सामान्यादि विषयों की, प्रत्यक्ष परोक्ष मिश्रित संकलना स्वरूप जो ज्ञान होता है उसको 'प्रत्यभिज्ञान' कहते हैं। जैसे-.. (1) यह गो पिंड ( गाय रूप पदार्थ ) उसी प्रकार का है। गषयोझ-गाय के जैसा होता है। (2) यह वही जिनदत्त है। ३-अन्वय-व्यतिरेक से उत्पन्न होने वाला तथा तीनों काल सहित साध्य साधन का जो संबंध, वही संबंध जिस में आलंबन रूप हो ऐसा, तथाः अमुक वस्तु के अस्तित्व में अमुक : वस्तु हो और अमुक वस्तु के न होने पर अमुक वस्तु न हो, इस प्रकार का जो संवेदन उस को, 'ह' या 'तर्क, कहते हैं। जैसे जहाँ धूआँ होता है वहाँ आग अवश्यमेव होती है। आग के नहीं होने से धूआँ भी नहीं होता है। इस प्रकार : के ज्ञान को 'तर्क' कहते हैं। ४-प्रतिज्ञा, हेतु, उदाहरण, उपनय और निगमन इन *
SR No.023533
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1932
Total Pages578
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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