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________________ ( 326 ) है। उत्सर्ग की रक्षा करने के लिए कहीं अपवाद मार्ग भी बताया गया है। मगर वह भी दूसरों को क्लेश करतो कदापि नहीं है / साधुपद स्वीकारने का चारों वर्णवालों को अधिकार है। चारों वर्ण के साधुओं का हक समान है। जैन शासन में यह बात नहीं है कि, ब्राह्मण ही ब्रह्मर्षि हो सकता है, दूसरा नहीं हो सकता या ब्राह्मण ही दंड धारण कर सकता है दूसरा नहीं कर सकता। किसी भी वर्ण का साधु हो, वह गुण की अधिकतासे ही अधिक माना जाता है। शरीर की अधिकता से या वर्ण की जाति की अधिकता से अधिक नहीं माना जाता है। जिसमें ज्ञान, दर्शन और चारित्र की अधिकता होती है, वही साधु पूज्य, माननीय और स्तवनीय होता है। ब्राह्मण लोग शंकराचार्य के सिवाय अन्य को नमस्कार नहीं करते हैं। दूसरे बिचारे साधु जब ब्राह्मणों को नमस्कार करते हैं, तब वे उनको पढ़ाते हैं। साधुसे-चाहे वह किसी वर्ण का हो; जिसने कंचन और कामिनी का त्याग कर दिया है-नमस्कार कराना सर्वथा अनुचित है। मगर ब्राह्मण उससे नमस्कार करवाते हैं। अति किसी बात की अच्छी नहीं होती। इस बात को सब मानते हैं। तो भी ब्राह्मण अति करते हैं, और इसीलिए उनके अति आचार अनाचार गिने जाते हैं। महानुभावो ! गुण का मान होता है तब ही अच्छा होता है। विना गुण के कमी कल्याण नहीं होता है। कोई जाति,
SR No.023533
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1932
Total Pages578
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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