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________________ ( 318 ) सोचा भगवाणु सासणं सच्चे तत्य करेन्जुवकमं / सव्वत्य विणीय मच्छरे उच्छं भिक्खु विसुद्धमाहरे // 14 // भावार्थ- घर में रहनेवाला गृहस्थ अनुक्रम से देशविरति को पारता हुआ, और सर्वत्र समभाववाला व्रती मी देवलोक में जाता है, तो साधु की तो बात ही क्या है ? वीतराग देव का आगम सुन, त्रिलोक के नाथने स्वानुभव पूर्वक जो संयम धर्म प्रकाशित किया है, उसको प्राप्त करने का उद्यम करो; प्राप्त संयम की रक्षा करो; रागद्वेष त्यागपूर्वक बयालीस दोष टाल कर शुद्ध आहार लो और ऐसा प्रयत्न करो कि जिससे उस आहार के द्वारा संयम की उज्ज्वलता बढ़े। श्री वीर परमात्मा के शासन में पक्षपात को देश निकाला दिया गया है। जो कोई चारित्र धर्म का पालन करता है वह मोक्षपुरी में जा सकता है। गृहस्थावास में रहा हुआ मनुष्य भी, यदि वह समभाव से रहता हो तो, स्वर्गादि गति पा, धीरे धीरे मोक्ष में जा सकता है। यदि वह भाव चारित्र में आरूढ हो, तो केवलज्ञान भी प्राप्त कर सकता है। केवलज्ञान प्राप्त होने के बाद शासनदेव उसको साधु का वेष अर्पण करते हैं / कारण यह है कि व्यवहार नय की प्रवृत्ति बलवान होने से यदि गृहस्थी देख कर, कोई केवली को वंदना
SR No.023533
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1932
Total Pages578
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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