SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 344
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( 317 ) जायगा। इस तरह अनुमान ही जब प्रमाणरूप हो जायगा तब जीवादि सब पदार्थ अनुमान प्रमाण से सिद्ध हो जायेंगे / जीव के विना जगत् केवल जडरूप है / जगत् में पदार्थ दो प्रकार के हैं / एक जड और दूसरा चेतन / जड़ पदार्थ के संबंध से मुक्त रहने के लिए शास्त्रकार वारंवार विचारशील रहने को कहते हैं। बारहवीं गाथा में मोह से दुःख और दुःख से मोह बताया. गया है। यह सर्वथा ठीक है। दुःखावस्था में मनुष्य विशेष रूप से मोही बन जाता है। मोही पुरुष पाप कर्म में प्रवृत्ति करता है। पाप कर्म से दुःख होता है / सूत्रकार कहते हैं कि, सब तरह के मोह को छोड़ कर ज्ञान गुणसहित बनो। अपने आत्मा को जैसे सुख प्रिय है और दुःख अप्रिय / इसी प्रकार संसार में जीवों को दुःख अप्रिय है और सुख प्रिय है / इसलिए ऐसी प्रवृत्ति मतकरो जिससे किसी को दुःख हो / केवल ऐसी ही प्रवृत्ति करो जिससे आत्महित हो / थोडासा धर्म ही जब स्वर्ग सुख का कारण है; तक साधु धर्म मोक्ष का कारण हो; इसमें आश्चर्य ही क्या है ? साधु धर्म से शायद-किसी कारणवश-मुक्ति न मिले तो स्वर्ग तो अवश्यमेव मिले / कहा है किः गारं पि अ आवसे नरे अणुपुब्वि पाणेहिं संजए / समता सव्वत्थ सुब्बते देवाणं गच्छे स लोगयं // 13 //
SR No.023533
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1932
Total Pages578
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy