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________________ ( 269) दूसरे के विरुद्ध हैं। उत्तरार्द्ध में निवृत्ति ' को महान् फल देनेवाली बताई है। मगर इस में सोचने की बात यह है कि, यदि प्रवृत्ति में दोष न हो तो फिर निवृत्ति में महान् फल कैप्से मिल सकता है ? संसार दोषग्रस्त है इसीलिए निर्वाण दोष मुक्त साबित होता है। विषय दुर्गति का कारण है इसीलिए ब्रह्मचर्य स्वर्ग का कारण होता है। इसी तरह प्रवृत्ति दोषपूर्ण मानी जायगी तब ही निवृत्ति महान् फल देनेवाली साबित होगी / यह बात ठीक उसी समय हो सकती है जब कि, श्लोक के पूर्वार्द्ध का अर्थ बालबुद्धि से न किया जाकर तत्वदृष्टि से किया जाय / जैसे न मांसभक्षणे दोषो' इस पद में 'मांसभक्षणे / और ' दोषो ' ऐसे दो शब्द हैं। इन दो शब्दों के बीच के लुप्त 'अकार' को मिलाकर इसका अर्थ करना चाहिए / अकार मिल जाने से इस पद का अर्थ होगा-"मांस खाने में अदोष नहीं है / दोष ही है / " इसी तरह मद्यपान में भी 'अदोष' नहीं है दोष ही है और इसी भाँति मैथुन में भी 'अदोष नहीं है दोष ही है। क्योंकि प्राणियों की प्रवृत्ति अनादिकाल से अज्ञान-जन्य है। इसलिए उससे निवृत्ति करे तो महान् फल मिले। इस तरह अर्थ करने से ठीक होता है। यदि कदाग्रह करके कहाजाय कि, मनुजी का वाक्य है कि, 'प्रवृत्तिरेषाभूतानां
SR No.023533
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1932
Total Pages578
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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