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________________ ( 268 ) उसके राग द्वेषका ही अभाव हो गया। जिसके राग द्वेष का अभाव हो जाता है, वह अपने भाषा-पुद्गलों को क्षय करने के लिए उपदेश देता है। वह इस बात की परवाह नहीं करता कि, सारे जीव सत्य धर्म-गामी होते हैं या नहीं। उसके उपदेश को सुनकर कई सद्भाग्यवाले भव्य होते हैं वे तो मिथ्यात्व को छोड़कर सम्यक्त्व दशा को प्राप्त कर लेते हैं और कई दुर्भव्य होते हैं वे उल्टे द्वेषानल में गिर, सत्य धर्म की निंदा करते हैं और प्रगाढ़ मिथ्यात्वी बनते हैं। जगत् में हमेशा से सत्यान्वेषियों की संख्या कम होती है और मिथ्याडंबरियों की ज्यादा / मिथ्याडंबरी अपनी बात को सही करने के लिए मिथ्याशास्त्रों की रचना भी करते हैं। उन मिथ्याशास्त्रों का प्रचार करने के लिए सत्य का अपलाप किया जाता है। हम यहाँ एक दृष्टान्त देंगे। मनुस्मृति के पाँचवें अध्याय में एक श्लोक है: न मांसभक्षणे दोषो न मद्ये न च मैथुने / प्रवृत्तिरेषाभूतानां निवृत्तिस्तु महाफला // भावार्थ-मांस खाने में, शराब पीने में और मैथुन करने में कोई दोष नहीं है / प्राणियों की यह प्रवृत्ति है / निवृत्ति से महान् फल की प्राप्ति होती है। इस श्लोक का पूर्वाद्ध और उत्तरार्द्ध-दोनों आपस में एक
SR No.023533
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1932
Total Pages578
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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