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________________ (214 ) कि जो पाप नहीं करता है; परन्तु वीर प्रभु के कई अणगार ऐसे हैं कि, जिन से नवीन कर्मों का आना बंद होता है और पुराने कर्मों का क्षय होता है। प्रश्न-ऊपर कहा गया है कि, संसार में कोई जीव ऐसा नहीं है कि, जिसको प्रतिक्षण कर्म का बंध नहीं होता है / इस लिए एवंभूतनय की दृष्टि से जब तक कोई सिद्ध नहीं हो जाता है तब तक उसके नवीन कर्मों का बंध होता ही रहता है। श्री वीर प्रमु के साधु भी संसार में हैं। और जब वे संसार में हैं तब उनके नवीन कौ का बंध भी जरूर होता ही है। यदि ऐसा नहीं माना जायगा तो यह बात मिथ्या हो जायगी कि, संसारस्थ जीवों के कर्म का बंध अवश्यमेव होता हैं। उत्तर-श्री वीरप्रभु के साधु भी कर्मबंध करते हैं / परन्तु उनके जो बंध पड़ता है वह अल्पतर होने से अबंध रूप ही होता है / जैसे केवली पहिले समय में सातावेदनी को बाँधते हैं, और दूसरे ही समय में उसको भोग लेते हैं इस लिए वह बंध, बंध रूप नहीं समझा जाता है / इसी भाँति शुभाशयवाले, अकषायी, ज्ञान दर्शन और चारित्र रूप रत्नत्रय के आराधक, अप्रमत्त भावों में विचरण करनेवाले मुनि अल्पतर कर्म बाँधते हैं और विशेषतर कर्मों की निर्जरा करते हैं, इसलिए उनके बंध को, भबंध कहने में कोई हानि नहीं है।
SR No.023533
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1932
Total Pages578
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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