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________________ ( 188 ) होता; कुटिल स्त्री, अविनयी पुत्र और स्वामि के दुर्वचन का डर नहीं रहता; राजादि को प्रणाम नहीं करना पड़ता; और भोजन वस्त्र की चिन्ता नहीं रहती / वहाँ अमिनव-नये नये-ज्ञान की प्राप्ति होती रहती है। लोग पूजा करते हैं; उससे स्वर्गादि गति मिलती हैं और महान् प्रशम सुख-जो सम्राटों को और इन्द्रों को भी प्राप्त नहीं होता है-साधुओं को प्राप्त होता है / ऐसी साधुता प्राप्त करने के लिए है सदबुद्धि जीवो! तुम यत्न करो। एक गुजराती कवि भी कहता है:साधु स्हेजे सुखिया, दुखिया नहिं लवलेश; अष्ट कर्मने जीतवा, पहेयो साधुनो वेष. भावार्थ-साधु अनायास ही-सहन ही में-सुखसे रहते हैं। उन्हें थोड़ासा भी कष्ट नहीं होता। उन्होंने आठों कर्मों को जीतने के लिए साधु का वेष पहना है / OCTO(c)@ACEIRDO तप विधान / Socess-OAD ऐसे साधुओं को खास तरहसे तप का गुण रखना चाहिएतप करना चाहिए / कहा है कि: धुणिया कुलियं च लेवयं किसए देहमणासणा इह / . अविहिंसा मेव पवए अणुधम्मो मुणिणा पवेदितो // 12 //
SR No.023533
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1932
Total Pages578
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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