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________________ ( 191) " पूर्वभव में मम्मण सेठ का जीव एक सामान्य वैश्य था। उसका ब्याह भी नहीं हुआ था। एक बार जिस नगर में मम्मण रहता था उस नगर के एक सेठने लड्डुओं की लहाण बाँटीभपनी सारी जाति में प्रति मनुष्य एक लड्डु दिया। मम्मण को भी एक लड़ मिला। उसने यह सोचकर लड्डु रख लिया-न खाया कि, किसी दिन खाऊँगा / एक दिन मम्मण निश्चिन्त भाव से अपने घर में बैठा हुआ था; उसी समय उसके भाग्य से एक पंच महाव्रतधारी मुनि शुद्ध आहार की गोषणा करते हुए वहाँ आ पहुँचे / मुनि को देख कर, उसने खड़े हो कर नमस्कार किया। फिर वह सोचने लगा" मेरा अहोभाग्य है जो मेरे घर मुनि महाराज पधारे हैं। मगर रसोई तो अबतक तैयार नहीं हुई है। मुनि को मैं क्या बहराउँ-आहार क्या देऊँ / " थोड़ी देर चिन्ता करने के बाद उसे लड्डू याद आया। उसने तत्काल ही लड्डु-जो साढ़े बारह सोना महोरों के खर्च से बनाया था-मुनिराज को, उनके योग्य समझ, बहरा दिया। मुनिराज बहरकर चले गये / मम्मण भी सन्तुष्ट होकर, बैठा / उसी समय उसकी पड़ोसनने आकर पूछा:-" क्या तुमने लड्डू ला लिया !" उसने उत्तर दिया:--" नहीं।" 11
SR No.023533
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1932
Total Pages578
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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