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________________ और आप के फैसले को सर्वथा न्याययुक्त समझते थे। आप श्री मक्सी तीर्थक्षेत्र कमिटी के सभासद थे, और भोपाल की जैन श्वेताम्बर पाठशाला की प्रबंधकारिणी कमिटि के प्रेसीडेंट थे। प्रेसिडेंट क्या थे, पाठशाला के सर्वस्व थे / आप वयोवृद्ध, ज्ञान-क्रिया में कुशल और अपनी धार्मिक प्रवृत्तियों में रातदिन प्रवृत्त रहते हुए, एक जुवान की तरह हरएक कार्य में स्फूर्ति रखते थे और आजकल की पद्धति के अनुसार होनेवाली सभा सुसाइटीयों में भी अक्सर भाग लिया करते थे और अपने विचारों को जाहिर करते थे। किसी विद्वान् का कथन है कि नियमों की कसौटी कष्ट में होती है। व्रत-नियमों का यों तो सब नियमपर दृढता। कोई पालन कर सकते हैं, परन्तु कष्टों के समय-आपत्ति के समय उन नियमों में दृढ रहना, यही सच्चा पुरुषार्थ है / यही सच्ची श्रद्धा का नाप है। आप अपने नियमों पर-व्रतों पर-धार्मिक क्रियाओं पर कितनी श्रद्धा और दृढता रखते थे, यह उस समय विशेष रूपसे मालूम होता था, जब कि-आप कभी कभी रोगग्रस्त होते थे। आप के बायें हाथ व पैर में राशे की बीमारी करीब तीन वर्षसे हो गई थी, जिप्त के कारण आप के शरीर में पूर्ण तकलीफ थी, हाथ हर समय धूनता ही रहता था / इतनी वेदना होते हुए भी आप अपनी रोन की क्रिया को, व्रत नियमादि
SR No.023533
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1932
Total Pages578
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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