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________________ (101) बाल बुद्धिवाले ! व्यर्थ दुःख क्यों करता है ! तूं अपना कार्य कर दूसरा सब कुछ छोड़ दे। ... उक्त श्लोक के भाव को अपने हृदय पर लिख लेना चाहिए। तदनुसार चल आत्महित करना चाहिए। अमृत क्रिया का आश्रय लेना चाहिए। मगर यह उसी समय हो सकता है, जब माया का त्याग कर दिया जाय / इसलिए शक्तिभर माया का त्याग करने की चेष्टा करना चाहिए / मायावी मनुष्य अपने आत्मा ही को धोखा देते हैं। कहा है कि- कौटिल्यपटवः पापा मायया बकवृत्तयः॥ भुवनं वञ्चयमाना वञ्चयन्ते स्वमेव हि // भावार्थ-कुटिलता-कपट करने में चतुर और माया से बगुले के समान वृत्ति धारण करने वाले पापी लोग जगत को उगते हुए अपने आप को ही ठग छेते हैं। ___ अब भिन्न 2 प्रकार की माया का-प्रपंच का स्वरूपवर्णन किया जायगा / यहाँ पहिले राजपपंच का विचार किया जाता है। कहा है कि:....... कूटपाड्गुण्ययोगेन छलाद विश्वस्तघातनात् / / .: अर्थलोमाच्च राजानो वञ्चयन्तेऽखिलं जगत् / /
SR No.023533
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1932
Total Pages578
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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