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________________ (10) सदैव संसार से मुक्त रहते हैं और जो माया से बँधे हुए हैं वे सदैव संसार में बंधे ही रहते हैं / आत्म-कल्याण की इच्छ। रखनेवाले मनुष्यों को सदैव माया से दूर रहना चाहिए। माया की जाल में जो मनुष्य फँसे होते हैं वे सदा सत्यव्रत से वंचित रहते हैं और अपने किये हुए दान, पुण्य, व सुकृत के फल से निराश होते हैं / माया सारे दुर्गुणों की खानि है। कहा है कि असूनृतस्य जननी परशुः शीलशाखिनः / . जन्मभूमिरविद्यानां, माया दुर्गतिकारणम् // . भावार्थ--माया, झूठ की माता है, ब्रह्मचर्य रूपी वृक्ष को काटनेवाली कुल्हाड़ी है; अविद्या की जन्मभूमि है और दुर्गति का कारण है। ____ मायावी मनुष्य अपना अभिमान रखने के लिए जूठ बोलते कभी नहीं रूकता / इतनाही नहीं झूठ बोलने में वह अपनी वीरता समझता है / अपने आचार विचारों को भी वह निर्भीक होकर छोड़ देता है। निन्दनीय दुर्गुण माया से प्राप्त होते हैं। दुर्गति तो इस से सहज ही में हो जाती है। ____ आज यह विश्वास नहीं हो सकता कि, इस पंचम काल में भी कोई मायाचार से बचा हुआ है। इस राक्षसी के पंजे में सब ही फंसे हुए हैं। प्रायः देखा जाता है कि मनुष्य अपने
SR No.023533
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1932
Total Pages578
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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