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________________ (2) सेठियाजैनग्रन्थमाला ५चार प्रकृति असन्तों की हैं---१ विना बुलाये किसी के घर जाना, 2 मित्र, शत्रु और ज्ञान हीन से घर का रोना रोना, 3 धनियों के सम्मुख अपने को धनी सा मानना, 4 अपनी आधी रोटी छोड़कर दूसरे की पूरी रोटी पर ध्यान देना / - चार प्रकृति कंजूसों की हैं-- 1 मित्रों से मुँह छिपाना, 2 किसी को देते हुए देखकर दुःखी होना और चिन्ता करना, 3 अतिथि को देखकर मुँह फेर लेना 4 अपनी सम्पूर्ण आयु धन संचय करने में बिताना / ७चार प्राकृति निर्धन होने की हैं-१ भालसी होना, 2 सब कामों में मूर्खता करनी, 3 हित को अहित समझना, 4 आय से अधिक खर्च करना / ८चार प्रकृति सत्पुरुषों की हैं—१ विद्या में प्रेम रखना, 2 वृद्ध और साधु की सेवा में सावधान होना, 3 मित्रवर्ग का तथा अपने आदमियों का पालन-पोषण करना, 4 जो कोई अतिथि घर पर भावे तो उस का अतिथि-सत्कर करना / चार प्रकृति मूर्ख की हैं-१ विद्या में उत्साह न होना, 2 नीचों का संग करना, 3 नौकर चाकरों के होते हुए भी छोटी 2 वस्तुएँ हाटमें खरीदते फिरना, 4 अहंकार में लिप्त रहना / 10 चार प्रकृति गँवारी की है-१हमेशा अधिक भोजन करना, 2 अभक्ष्य चीजों के भक्षण करने में प्रेम रखना, ३विना कारण सब
SR No.023531
Book TitleNiti Shiksha Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBherodan Jethmal Sethiya
PublisherBherodan Jethmal Sethiya
Publication Year1927
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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