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________________ (१६) करवायी मरण थाय छे." आथी करीने संध्या समये स्वाध्याय करपाथी लोकमां "अहो ! आ जैनो पोतार्नु सर्वज्ञपुत्रपणुं प्रसिद्ध करेछे, परंतु संध्यासमये स्वाध्यायनो निषेध छे, एटलं पण जाणता नथी." ए रीते निंदा थाय छे. वळी संध्यासमये जो स्वाध्यायमा ज तत्पर रहे, तो साधुने प्रतिक्रमणादिक आवश्यक क्रियामां अने श्रावकोने देवपूजा, प्रतिक्रमण विगेरेमा उपयोग रहे नहीं. अने जो ते वखते स्वाध्याय करवानो न होय, तो ते आवश्यक क्रियामा उपयोग रहे, तथा निरंतर स्वाध्याय करवाथी खेद पामेलाने विश्रांति पण मळे, तेथी करीने श्रुतपाठादिक कहेले काळेज करवां युक्त छ.. कदाच कोइ विशेष कारणने लोधे काळनो अतिक्रम थाय, तो तेमां दोष नथी. ते प्रमाणे निशीथ सूत्रादिकमां अनुज्ञा आपेली छे. ___अहीं कोइने शंका थाय के-" जेम शुभ ध्यान मोशनुं कारण होवाथी सर्वकाळे करवानुं कर्तुं छे, तेम श्रुतज्ञान पण मोक्षनुं कारण होवाथी सर्वकाळे स्वाध्याय केम न कराय ? केमके जे मोक्षतुं कारण छे, तेनो काळ के अकाळ कांइ पण नथी." गुरु तेनो उत्तर आपे छे के"हे भद्र ! तारी शंका साची छे. परंतु जे शुभ ध्यान छे,ते सर्व क्रियामा रहेतुं छे, अने ते मानसिक छे, तेथी तेनावडे कोइपण धर्मक्रियाने बाध थतो नथी; पण उलटी सर्वे क्रियाओने पुष्टि मळे छे. तेथी शुभ ध्यानतुं सर्वकाळे करवापणुं घटे छे. अने श्रुतज्ञान तो भणवा-गणवा विगेरेवडे साध्य छे, माटे बे संध्याना आवश्यकादिकनी जेम नियमित समये ज उचित छे. कदाच सर्व काळे श्रुतज्ञानमुंज पठनादिक करवा
SR No.023524
Book TitleGyanpanchami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManek Bahen
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1914
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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