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________________ चा गणवाथी आज्ञाभंग, ज्ञानाचारनी विराधना विगेरे दोषो सागवाथी. प्रायश्चित्त लेवानुं कर्तुं छे, तेमज अकाळे स्वाध्याय करवाथी प्रमत्तपणाने लीधे दुष्ट देवता पण तेने छळेछ, विगेरे कहुं छे. ते बाबत निशीथ भाष्यमां आ प्रमाणे कर्जा छे के-" पहेली अने छेल्ली संध्या समये, मध्याह्न समये अने अधरात्रि समये ए चार संध्याओ वखते जे मनुष्य स्वाध्याय करे छे, तेणे आज्ञादिकनी विराधना करी छ एम जाणवू." वळी ते संध्याओमां स्वाध्याय करवाथी लोकमा पण निंदा थाय छे (केमके लौकिक श्मस्त्रोमां पण संध्यासमये स्वाध्याय करवानो निषेध कर्यो छे. ) तथा संध्याने विषे गुह्यक-व्यंतरो विगेरे फरे छे. संध्या वखते स्वाध्याय नहि करवाथी आवश्यकनी उपयोग थइ शके छे. (प्रतिक्रमण थइ शके छे.) तथा स्वाध्याय करचाथी थाकी गयेलाने एटलो वखत विश्रांति पण मळे छे. जोके श्रुतनो उपयोग ( भणवु गणवू ) तथा तप-उपधान अत्यंत श्रेष्ठ कहेला छे, तोपण निषेध करेला काळे करवाथी ते कर्मबंधने माटे थाय छे. लौकिक शास्त्रमा पण काळवेळाए संध्यावंदन, वैश्वदेव, तर्पण, होम विगेरे शांतिकर्म करवानुंज कहुं छे, पण स्वाध्याय करवान कहुं नथी; केमके स्वाध्याय परमतत्वरुप होवायी दुष्ट समये तेनो निषेध करेलो छे. कहुं छे के-" संध्याकाळे आहार, मैथुन, निद्रा अने स्वाध्याय ए चार कर्मने विशेषे करीने वर्जवा केमके संध्याकाळे आहार करवाथी व्याधि उत्पन्न थाय छे, मैथुन करवाथी दुष्ट गर्भ उत्पन्न थाय छ, निद्रा करवाथी धननो नाश थाय छे अने स्वाध्याय
SR No.023524
Book TitleGyanpanchami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManek Bahen
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1914
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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