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________________ (२५) चुनाव जोवाने जाणे अशक्त होय एम सूर्य बीजा द्वीपमा जतो रह्यो( अस्त थयो. ) अने तेनी स्त्री संध्या पण सतीनी जेम ते सूर्यनी पाछळ गइ पछी ज्योर मिथ्यात्वना समूहनी जेम अंधकारनो समूह चोतरफ विस्तार पाम्यो त्यारे ते कन्याए पतिने भाटे सुंदर संथारो पाथरी आप्यो. तेमां सुखे सुतेला ते पतिए तेप्पीनी परीक्षा करवा माटे तेणीने कछु के- " हे भद्रे ! हा ! हा ! तूं आ मोटा दुःख समुद्रमां केम पडी ? प्रथम तो तें भोळीए आ अयुक्त कार्य कर्यु, त्यार पछी बीजुं अयुक्त कार्य में कर्यु अने राजाए तो बहुज अयुक्त कर्यु. केमके पिता थईने आवुं अयुक्त केम करी शकाय ? कहां छेके - ' कदाचित् अल्प मेमने लीधे छोरु तो कछोरु थाय, पण अत्यंत प्रेमवाळा मातापिता ( मावतर ) कुमातापिता ( कुमावतर ) केम थाय ?' पण हे सुंदरी ! हजु कांइ जतुं रां नथी अने कांइ बगडी गयुं नथी. हजु पण तुं स्वेच्छाथी ज्यां जं होय त्यां जा अने बीजा कोइ श्रेष्ठ वरने वर, तेथी तुं कृतार्थ थइश. अत्यारे कोई जोतुं पण नथी अने कोइ कांइ पूछतं पण नथी, माटे तुं इच्छा प्रमाणे जा. केमके लक्ष्मीने तथा हरणना सरखा नेत्रवाळी सुंदर स्त्रीओने सर्व स्थाने पोतानी मेळेज मान मळे छे. अत्यंत निंदवालायक पोतानो पण निर्वाह करवाने समर्थ नथी, तो तारो शी रीते थशे ? तेथी तारे अपवित्र वस्तुना जेम मारो करवो योग्य छे. " आ प्रमाणनां पतिनां वचनो सांभळीने माधुं हलाबती अने बे हाथ पोताना कानने ढांकती ते कन्या बोली के- 'हा ! एवा हुं मारो निर्वाह माराथी दूरथीन त्याग
SR No.023524
Book TitleGyanpanchami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManek Bahen
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1914
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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