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________________ करी के-" आ कन्याने लइने तुं अहींथी जा, अने आनी पासे दासीनी जेम काम करावजे. " पछी जाणे तेणीए मोटी चोरी करी होय तेम तेणीने राजाए अति कोपथी कलु के-"आ वरनी साथे जीवित पर्यंत निर्वाह करजे, अने उत्तम सुख पामजे." ते सांभळीने साहसिक एवी ते कन्या पण "बहु सारं" एम नम्रताथी कहीने देवनी जेम ते वरनो हाथ झालीने पिताना घरमांथी तेनी लक्ष्मीनी जेम नीकळी गइ. राजाए निषेध करवाथी कोइ दासी पण तेणीनी साथे जइ शकी नहीं, अने राजाना कोपना भयथी अनिष्टनी जेमतेणीने कोइ बोलावी पण शक्युं नहीं. ते बखते केटलाक लोको राजाने दोष देवा लाग्या, केटलाएक ते कुंवरीने दोष देवा लाग्या, केटलाएक राजाना कोपनो दोष कहेवा लाग्या, केटलाएक प्रधानादिकनो दोष प्रगट करवा लाग्या, केटलाएक ते कन्याना गुरुनो दोष काढवा लाग्या, केटलाएक तेणीना मुग्धपणानो दोष काढवा लाग्या, केटलाएक तेणीना खराब ग्रहनो दोष कहेवा लाग्या अने केटलाएक धर्मीष्ट लोको तेणीना कर्मनोज दोष कहेवा लाग्या. . आ प्रमाणे नगरजनोनां नवां नवां वचनो सांभळती ते कन्या वे पतिनी साथे नगरनी बहार तेज उद्यानमा जइने जाणे जूदाज स्वादवाळी ( आनंदवाळी ) होय तेम विषाद ( खेद ) पाम्या विना तेनी साथेज रही. अने तेवा कोढीया वरनी पण जाणे कोइ श्रेष्ठ देवता होय तेम परम भीतिरसे करीने सेवा करवा लागी. 'सतीओनुं सत्व महा आश्चर्यकारक होय छे. ' पछी ते अयोग्य अने असमान
SR No.023524
Book TitleGyanpanchami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManek Bahen
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1914
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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