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________________ ( १९७ ) अमूर्त भाव प्रगटपणे ए, जाणे श्री भगवंत । चरण कमल नमुं तेहना, विजय लक्ष्मी गुणवंत ॥ ३ ॥ इति चैत्यवंदन ॥ ॥ पछी नमुध्धुणं० ॥ कहीए ते आ प्रमाणे जावंति० ॥ नमोऽर्हत्० || कही स्तवन ॥ अथ स्तवन ॥ ॥ जोरेजी ॥ ए देशी ॥ जीरे मारे श्री जिनवर भगवान, अरिहंत निज निज ज्ञानथी | जीरेजी || जी० ॥ संयम समय जाणंत, तव लोकांतिक मानथी । जीरेजी ॥ १ ॥ जी० ॥ तीर्थ बर्तावो नाथ, इम कही प्रणमे ते सुरा ॥ जीरेजी ॥ जी० ॥ षट् अतिशयवंत दान, इने हरखे सुर नरा || जीरेजी ॥ २ ॥ जी० ॥ इण विध सावे अरिहंत, सर्व विरतिं जब उच्चरे ॥ जीरेजी ॥ जी० || मनःपर्यव तत्र नाण, निर्मल आतम अनुसरे || जीरेजी ॥ ३ ॥ जी० ॥ जेहने त्रिपुलपति तेह अप्रतिपातीपणे उपने ॥ जीरेजी ॥
SR No.023524
Book TitleGyanpanchami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManek Bahen
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1914
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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