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________________ ( १९४ ) ऋषभादिक चऊवीश जिणंदना रे, नमे प्रभुपद अरविंद रे || पूजो ० || ४ || अवधिज्ञानी आणंदने दीए रे, मिच्छामि दुक्कड गोयमस्वामि रे ॥ वरजो आशातन ज्ञान ज्ञानी तणी रे, विजयलक्ष्मी सुख धाम रे || पूजो ०||५|| ॥ इति अवधिज्ञान स्तवन ॥ पछी जयवीयराय कही खमासमण दइ, इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अवधिज्ञान आराधनाथ करेमि काउस्सगं || वंदण० ॥ अन्नत्थ० || एक लोगस्स अथवा चार नवकारनो काउस्सग्ग करी पारीने थोय कवी ते नीचे प्रमाणे॥ अथ थुई ॥ ॥ शंखेश्वर साहिब जे समरे | ए देशी ॥ ओहि नाण सहित सवि जिनवर, चवी जननी कूखे अवतरु । जस नामे कहीए सुख तरु, सवि इति उपद्रव संहरु | हरि पाठक संशय संहरू, वीर महिमा ज्ञान गुणायरु । ते माटे प्रभुजी विश्वभरु, विजयांकित लक्ष्मी सुहंकरु ॥ १ ॥ ॥ इति स्तुति. ॥ पछी खमासमण दइ उभा रही अवधिज्ञानना गुण वर्णववाने दुहा कहेबा ते कहे छे. ॥ दुझ ॥ • असंख्य भेद अवधिता, षट् तेहमां सामान्य || क्षेत्र पनक़ लघुथी गुरु, लोक असंख्य प्रमाण ॥ १ ॥
SR No.023524
Book TitleGyanpanchami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManek Bahen
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1914
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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