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________________ (१५५ ) ॥ कंकन खोल देउं महाराज ॥ यह चाल || सबमें ज्ञानवंत वडवीर, काटे सकल कर्मजंजीर ।। अंचली ।। भक्ष्याभक्ष्य न जे बिन जाने, गम्यागम्य नहिं पिछाने ॥ कार्याकार्य न जाने कीर ॥स०॥१॥ प्रथम ज्ञानही दया पिछाने, अज्ञानी सरसो नही जाने ॥ असे कहे सिद्धांते वीर ॥ स०॥२॥ श्रद्धा सकळ क्रियाका मूल, तिसका मूलही ज्ञान अमूळ ॥ सच्चा ज्ञान धरो मन धीर ॥स०॥३॥ पंच ज्ञानमें श्रुत प्रधान, स्वपर प्रकाशे तिमिर मिटान ॥ जगमें अति उपगारी हीर · ॥ स०॥४॥ लोकालोक प्रकाशनहारा, त्रिभुवन सिद्धराज सुखभारा ॥ सत् चिद् आत्मराम गंभीर ॥ स०॥५॥ इति सप्तमी पूजा. पन्यासजी श्री गंभीरविजयजीकृत नवपदजीनी पूजामांथी ज्ञानपदनी पूजा ७ मी. दुहा. निबिड अज्ञान तिमिर हरी, प्रकाशे षस्तु मात्र, नमो नमो ज्ञानदिनपति, उदयो दिन ने रात्र.
SR No.023524
Book TitleGyanpanchami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManek Bahen
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1914
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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