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________________ त्यारपछी केवळज्ञान छे. कारण के श्रुतज्ञान पोतानो अने बीजां ज्ञानोनो विभाग करनार छे. अर्थात् श्रुतज्ञानथीज थुतज्ञान अने बीजा ज्ञानोनी समजण पडे छे. श्रुाज्ञान एटले द्वादशांगी संबंधी ज्ञान.. ज्ञानाचारना आठ भेद छे. ज्ञान आ भव अने परभवने विषे हितकारक छे, कारण के प्राये ज्ञानथीज इष्टकार्यनी सिद्धि थाय छे. ज्ञान विना विपरीत फळनी पण प्राप्ति थाय छ, अने ते सर्वजनने अनुभवसिद्ध छे. जेमके-भोजन, गमन, आच्छादन (पहेर), शयन, बेसबुं, बोलवू, थयेली वात कहेवी, स्नान, पान, गायन, विज्ञान ( कळा), दान, ग्रहण, निवास, प्रीति, वैर, स्वजनता, पिशुनता, सेवा (नोकरी), युद्ध, औषध, मंत्रसाधन, देवनी आराधना, थापण मूकवी विगेरे विश्वासनां कार्यो, तथा राज्यनो व्यपार ए विगेरे सर्व कार्योमां जो कदाच भावी ( थवाना ) अनर्थनुं ज्ञान होय तो तेमां मनुष्य शीरीते प्रवर्ते ? अने तेज अनर्थनी शंकावाळा भोजनादिकमां इष्ट सिद्धि थशे, एवं जो ज्ञान होय तो तेमां केम न प्रवर्ते ? कमु छ के.-" द्वेषादिक सर्व दोषो करतां पण अज्ञान ए मोटुं कष्ट छे, केमके अज्ञानथी आबरेलो जीव हित अथवा अहित पदार्थने जाणतो नथी. अने ज्ञान ए प्रयत्नविनानो प्रदीप ( दीवो) छे, निरंतर उदय पामेलो सूर्य छ, त्री@ लोचन छे अने चोरी न शकाय के हरण करी न शकाय तेवू धन छे," वळी कांछे के-" पापथी निवृत्ति, कुशळपक्षमा प्रवृत्ति अने विनयनी प्राप्ति ए त्रणे ज्ञानीज थाय छे. " तत्त्वने विषे श्रद्धा राखवा रुप जे दर्शनादिक, ते पण ज्ञानथीज प्राप्त थाय छे. केमके
SR No.023524
Book TitleGyanpanchami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManek Bahen
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1914
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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