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________________ ( ९४ ) शिवनां चैत्यमां आव्या. त्यां शिवलिंग तरफ पोताना पग राखीने सूता. ते जोइने लोको तेने 'कोण छो ? ' विगेरे पूछवा लाग्या, परंतु तेणे कांइ पण जवाब आप्यो नहीं. त्यारे तेओए राजाने जणान्यु के" हे देव ! आपना महादेवना चैत्यमां कोइ परदेशी आवीने रह्यो छे, अने महादेवनी आशातना करे छे. ते बोलाव्या छतां बोलतो नथी, तथा महादेवने प्रणाम पण करते। नथी." ते सांभळीने विक्रम राजाए कौतुकथी त्यां आवी तेने कां के " हे अवधूत ! तमे कोण छो ?" तेणे जवाब आयो के - " हुं धार्मिक छं." राजाए कयुं के - "त्यारे केम अर्थथी तथा नामथी महादेवने प्रणाम करता नथी?" ते सांभळीने जिनमतनी उन्नति करवामां अत्यंत उत्सुक थयेला सूरि कांइक विचार करीने बोल्या के - " हे राजा ! ज्वरथी पीडायेलो माणस जेम मोदकनो स्वाद लइ शके नहीं, तेम आ तमारा देव अमारी वंदना के स्तुति सर्वथा सहन करी शके तेम नथी. " राजाए कहां के - " केम राजाए आवुं संबंधविनानुं बोलो छो ?" तेणे करूं के - " मारी स्तुति करवाथी कदाच आ प्रतिमाने कांइ पण उपद्रव थाय, अने तेथी तमारी अप्रसन्नता थाय एवी मारा मनमां शंका रहे छे. क - " कांइ शंका राखो नहीं. खुशीथी नमस्कार अने स्तुति करो.” सांभळीने सूरिए श्री वर्धमान स्वामीना गुणोथी गर्भित, सारी रचनावाळी अने महान् अर्थवाळी बत्रीश वत्रीशीवडे प्रथम स्तुति करी. पछी अधिष्ठायक देवनुं समीपपणुं होवाथी आ दुषमा समयम पण अनुपम प्रभाववाळा श्री पार्श्वनाथनी चुमाळीश श्लोकवाळा कल्या• ܕܪ
SR No.023524
Book TitleGyanpanchami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManek Bahen
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1914
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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