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________________ ( ९३ ) अर्थ — चारित्रनी इच्छावाळा बाळक, स्त्री, मंद बुद्धिबाळा अने मूर्ख माणसोना अनुग्रहने माटे तत्रज्ञ पुरुषोए सिद्धांतने प्राकृतमां रच्या छे. १. बुद्धिमान मुनिवरोने माटे चौद पूर्वो संस्कृतमांज रचेला संभळाय छे, माटे हे सूरि महाराज ! तमे आवा वचनमात्रथी पण जिनेश्वरादिकनी अत्यंत आशातना करी छे, तेने माटे जे प्रायश्चित्त शास्त्रमां होय ते विचारीने जलदी अंगीकार करो." आ प्रमाणे संघनी आज्ञा सांभळीने सूरिने सारी रीते पोतानी भूळ जणायाथी अत्यंत पश्चाताप थयो, अने ते बोल्या के - " विना विचारे बोलनार अने जिना - दिकनी आशातना करनार एवा मने धिक्कार छे. आ दोषने टाळवा माटे मने 'पाचिक प्रायश्चित्त प्राप्त थाय छे. जो के हालना समयमां तेवा प्रकारना संहनन आदि बळना अभावने लीधे आ पारांचिक प्रायश्चित्तनो व्युच्छेद थयो छे, तो पण वार वर्ष सुधी आ पारंचिक प्रायश्चित्तनुं हुं आचरण करीश, तेमां रजोहरण, मुखवत्रिका विगेरे जैन लिंगने गुप्त राखी, अवधूतनो वेष धारण करी, मौनने अंगीकार करी, दुष्कर तपस्या करवामां उद्यमवंत थइ, संयमना उपयोगमां सारी रीते युक्त रही, गुप्त वृत्तिथी पांडवोनी जेम बार वर्ष सुधी हुं विहार करतो फरीश. " एम कहीने ते सूरि संघनी आज्ञाथी गच्छवासनो त्याग करी माणसोना जाणवामां न आवे तेम विधिप्रमाणे गाम नगरादिकमां बिहार करतां सात वर्षे पूर्ण थये उज्जयिनी नगरीमां महाकाळ नामना १ दश प्रकारना प्रायश्चित्तमां आ सौथी छेल्लुं अने मोटुं छे. ·
SR No.023524
Book TitleGyanpanchami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManek Bahen
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1914
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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