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________________ (१७) नव पदार्थनो जाण हुवे। द्रव्यथका १, खेत्रथकीर, कालथकी ३, भावथकी ४, नोकारसी आदि देई वरसी तप सरदवो । त्यारे श्री गोतमस्वामी पूछता हुवा स्वामीनाथ एहनो शुं गुण नीपन्यो त्यारे श्रीभगवंत देवजी बोल्या अहो गोतम गुण ए नीपन्यो नरक गतिर्नु आऊखो १, तीर्यच गतिर्नु आउखो २, स्त्री वेद ३, नपुंसक वेद भवनपतिनो योतिषी व्यंतर आउखो ७, ए सात समकितमाही नवु न बांधे ॥४॥ हवे पांचमुं देशवृती गुणठाणा नो लक्षण कहे छे । पांचों देशवृती तेहनीप्रकृती ग्यारह साततो पहिले कही ते अने प्रत्यानुबंधी क्रोध १, मान २, माया ३, लोभ ४, एम ११ प्रकृती खयोपसम करे त्यारे पांचमुं गुणआवे जीवादिक नव द्रव्य थकी ४ नोकारसी आदि देई वरसी तप सरदवो शक्ति परिणामें करने त्यारे श्री. गोतमश्वामी पूछता शुं गुण निपन्यो युण ए निपन्यो जघन्य तो त्रीजे भवे मोक्ष जाय उत्कृष्टो
SR No.023523
Book TitleTattvabodhak Kalyan Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemshreeji
PublisherHemshreeji
Publication Year1916
Total Pages100
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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