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________________ (४६) मोहनी ६, समकित मोहनी ७, तेहना भांगा नव पहिले भांगे आगली ४ प्रकृति खपावे ३ प्रकृति उपसमावे तेहने खयोउप समकित कहिये । बीजे. भांगे आगली ५ प्रकृति खपावे २ उपसमावे तेहने खयोपसम समकित कहिये । त्रीजे भांगे आगली ६ प्रकृति खपावे १ उपसमावे तेहने उपसमकित कहिये । चोथे भांगे आगली ४ प्रकृति खपावे २ उपसमावे श्वेदें तेहने खयोपसम वेदक समकित कहिये । पांचमें भांगे आगली ५ प्रकृति खपावे १ उपसमावे १ वेदें तेहने खयोपसम वेदक समकित कहिये । छठे भांगे आगली ६ प्रकृति उपसमावे १ वेर्दै तेहने उपसम वेदक समाकित कहिये। सातमें भांगे आगली ६ प्रकृति खपावे १ वेदें तेहने खाहक वेदक समकित कहिये । आठौभांगे प्रकृति ७ उपसमावे तेहने उपसम समकित कहिये नवमें भांगे ७ प्रकृति खपावे तेहने खायक समकित कहिये । त्यारे चोथे गुणठाणा आवे जिवादिक
SR No.023523
Book TitleTattvabodhak Kalyan Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemshreeji
PublisherHemshreeji
Publication Year1916
Total Pages100
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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