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________________ (२४) ॥ हवे बावीसमें वेद द्वार कहे छे॥ वेद तीनना नाम ॥ पुरुषवेद, स्त्रीवेद, नपुंसक वेद । नारकी, पांच थावर, त्रण विकलेंद्री ए नव दंडके एक नपुंसक वेद । तिर्यच पंचेंद्री, मनुष्यने त्रण वेद । देवताने तेर दंडके स्त्री ने पुरुष एबे वेद पामें ॥ ॥ हवे त्रेवीसमुं भवन द्वार कहे छे॥ पहिली नरके सि लाख नरका वासा, वीजी नरके पच्चीस लाख नरका वासा, त्रीजी नरके पन्नरलाख नरका वासा, चोथी नरके दसलाख नरका वासा, पांचमी नरके त्रणलाख नरका वासा, छठी नरके एक लाख मां पांचउणा नरका वासा, सातमी नरके पांच नरका वासा सर्व थईने चोरासी लाख नरका वासा जाणवा । तथा दक्षिण ना पासा ना दस इंद्रना भुवन कहे छ । चमरेंद्र ने चोंत्रीस लाख भुवन, धरणेंद्रने
SR No.023523
Book TitleTattvabodhak Kalyan Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemshreeji
PublisherHemshreeji
Publication Year1916
Total Pages100
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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