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________________ (२३) व्यंतर, योतिषी, वैमानिक, पहिला बीजा देवलोके गता गति कहेछ । पृथ्वी, पाणी, वनस्पती, तियंच पंचेंद्री अने मनुष्य एपांच गति। मनुष्यअने तिर्यचपंचेंद्री एवे दंडके आगति, त्रीजादेवलोकथीमाडी आठमां देवलोक सुधी तीर्यच पंचेंद्री अने मनुष्य ए बे दंडकनी गति, एहीज बे दंडकनी आगति. नवमां देवलोकथी मांडी सर्वार्थ सिद्धी सुधी, मनुष्य ने अगति अने मनुष्य ने गति मनु. ष्य ने चोवीसनी गति, तेऊ, वाऊ विना बावीस नी आगति, तीर्यच पंचेंद्रीने चोवीसनी गति अने चोवीसनी आगति, त्रण विकलेंद्री, पांच थावर, तिर्यच पंचेंद्री, मनुष्य ए दस दंडकनी आगीत, एहीज दसनी गति, पृथ्वी, पाणी, वनस्पती ए त्रणने एहीज दसनी गति, नारकी विना तेवीस नी आगति, तेऊ, वाऊ ने तेर देवता। नारकी, मनुष्य विना ९नी गति । अने तेर देवता नारकी विना १० आगति छे ॥ इति २१ दार संपूर्ण ॥
SR No.023523
Book TitleTattvabodhak Kalyan Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemshreeji
PublisherHemshreeji
Publication Year1916
Total Pages100
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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