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________________ निर्भीड - अष्ट ॥ ४ ॥ निर्मोह – अष्टक ॥ अहंममेति मंत्रोऽयं, मोहस्य जगदान्ध्यकृत् ॥ अयमेवहि नञ् पूर्वः, प्रतिमंत्रोऽपि मोहजिन् ॥ १ ॥ शुद्धात्मद्रव्य मेवाsहं, शुद्ध ज्ञानं गुणो मम ॥ नान्योऽहं न ममान्ये चे, त्यदो मोहास्त्र मुल्वणम्॥२॥ यो न मुह्यति लग्नेषु, भावेष्वोदयकादिषु ॥ आकाशमिव पंकेन, नासौ पापेन लिप्यते ॥ ३ ॥ पश्यन्नेव परद्रव्य, नाटकं प्रतिपाटकम् ॥ भवचक्र पुरस्थोऽपि, नामूढः परि खिद्यते ॥ ४ ॥ विकल्प चषकै रात्मा, पीत मोहासवो ह्ययम् ॥ भवोच्चताल मुत्ताल, प्रपंच मधितिष्ठति ॥ ५ ॥ निर्मल स्फटिक स्येव, सहजं रूपमात्मनः ॥ अध्यस्तोपाधि संबंधो, जड स्तत्र विमुह्यति ॥ ६॥ अनारोप सुखं मोह, त्यागादनुभवन्नपि ॥ आरोप प्रिय लोकेषु वक्तुमाश्चर्यवान् भवेत् ॥ ७ ॥ यश्विद्दर्पण विन्यस्त, समस्ताचार चारुधीः ॥ क नाम स पर द्रव्ये ऽनुपयोगि निमुह्यति ॥ ८ ॥ te
SR No.023521
Book TitleJain Hitopadesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherJain Shreyaskar Mandal
Publication Year1909
Total Pages352
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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