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________________ सिद्धांत रहस्य ॥८६॥ पणे जे गर्भ छे तेने देवानंदाजीनी कुंखे संक्रमावो. त्यारे हरणगमेषी देव 'तहत्त' प्रमाण करी आनंदथी शिघ्र त्यां आवी प्रभुने वंदन नमस्कार करीने क' के: - "हे स्वामिन्! रुडं जाणजो हुं आपनो संहरणकरूं छु;" एम कही देवानंदाजीमाताने अवस्वापिनी निद्रा आपी गर्भनुं संहरण करीने त्रिशलाजीनी कुंखमां संक्रमण कर्यु. त्यां प्रभु एकंदर सवानव मासे जन्स्या. त्रीश वर्ष घरमा रह्या, पछी एकाकीपणे संयम लीधो. साडाबार वर्ष ने एक पखवाडिया सुधी छमस्थ रही उग्र तप करी अने देव, मनुष्य ने तिर्यच कृत घोर परीषह - उपसर्ग ने सहन करीने प्रभु केवलज्ञान ने केवलदर्शन पाम्या कांइक न्यून ग्रीश वर्ष केवल पर्याय अने १२॥ वर्ष ने एक पक्ष छद्मस्थ संयम पर्याय एम ४२ वर्ष संगम पाली, ७२ वर्षनुं आयुष्य पूरण करीने चोथा आराना ३ वर्ष |८|| माम बाकी रह्या त्यारे कार्तिक वदि अमावास्या ( दीवाळी )नी रात्रिए स्वामी मोक्षे गया. ते प्रभुना छ कल्याणक थपा ते १ च्यवन क०, २ गर्भसंहरण क०, ३ जन्म क०, ४ दीक्षा क०, ५ केवलज्ञान क० ए पांच कल्या० ' उत्तराफाल्गुनी ' नक्षत्रमां थया अने 'स्वाति ' नक्षत्रमां निर्वाण पाम्या ए आराने विषे गति पांच होय. महावीरस्वामी मोक्ष गया ते रात्रिए गौतमस्वामीने केवलज्ञान उपनुं. ते १२ वर्ष केवलपर्याय पालीने निर्वाण पधार्या, त्यारे सुधर्मास्वामीने केवलज्ञान उपनुं. ते ८ वर्ष केवल पर्याय पालीने निर्वाण पाम्या. त्यारे १ महावीरप्रभुना छ कल्याणक विचारणीय छे. कल्याणक पांच योग्य छे. गर्भसंहरणमां मतभेद छे, प्राचीन प्रथोमां ए वस्तुने स्थान नथी मल्युं. श्री जिनवल्लभसूरीश्वरथी छ कल्याकनो प्रवाद ( कथन ) छे. छआरानो विचार ॥८६॥
SR No.023509
Book TitleSiddhant Rahasya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Upadhyay
PublisherGangji Virji Shah
Publication Year1937
Total Pages248
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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