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________________ वर्त्तनु. श्रीजाथी इग्जाव आश्रयी जाण सेने धर्मध्यानाद्वार कहे हे द्वारवर्णन सिद्धांतरहस्य ॥६८॥ ॥६८॥ +CREARRACCORE वर्त्तनुं. त्रीजाथी इग्यारमा गुणसुधी अंतर, ज. अंतब्ने उ० देशे उणा अर्द्धपुन्न. बारमे, तेरमे ने चौदमे गु० अंतर नथी; ते एक जीव आश्रयी जाणवु.५ ध्यानद्वार कहे छे:-पहेले, बीजे ने बीजे गु० ध्यान बे-आरी ने रौद्र. चोथे ने पांचमे गु०त्रण ध्यान-आ०, रौने धर्मध्यान. छठे गु०बे ध्यान-आर्त ने धर्मध्यान. सातमे गु०१ धर्मध्यान. आठमाथी चौदमा गु० सुधी १ शुक्लध्यान. ६ स्पर्शनाद्वार कहे छः-पहेलु गुणस्थान, चौद राजलोक स्पर्श. बीजु गु० नीचे पंडकवनथी ते छट्ठी नरक सुधी अने उपर अधोगाम विजयथी ते नव ग्रैवेयक लगे स्पर्शे. त्रीजु गु० लोकनो असंख्यातमो भाग स्पर्श. चोथु गु० उपर अधोगाम विजयथी बारमा देवलोक लगे स्पर्श. नीचे पंडकवनथी छट्ठी नरक लगे स्पर्श. पांच, गुरु उपर अधोगाम विजयथी यारमा देवलोक लगे स्पर्श. छट्ठा | गु०थी इग्यारमा गु० सुधी उपर अधोगाम विजयथी पांच अनुत्तर विमान लगे स्पर्श. बारमुं गु०, लोकनो असंख्यातमो भाग स्पर्श. तेरमुं गु०, सर्व लोक स्पर्श. चौद, गु०, लोकनो असंख्यातमो भाग स्पर्श. ७ तीर्थकर गोत्रद्वार कहे छे:-चोथो, पांचमो, छट्ठो, सातमो ने आठमो ए पांच गुणठाणे तीर्थकरगोत्र बंधाय, शेष गुण न बंधाय. ८ तीर्थंकर स्पर्शनाद्वार कहे छे:-तीर्थकर देव पहेलो, बीजो, त्रीजो, पांचमो अने इग्यारमो. ए पांच गु० छोडीने शेष ९ गु० स्पर्श.९ शाश्वतद्वार कहे छे:-पहेलो, चोथो, पांचमो, छट्ठो, सातमो अने तेरमो |ए छ गु०, शाश्वता छे शेष ८ गु०, अशाश्वता छ १० कालद्वार कहे के:-त्रीजे, बारमे ने तेरमे ए ३ गुन्मां प छगुणठाणे वर्तता जीयो, हमेशां होय छे; माटे शाश्वता कहेल छे. छ सिवाय आठ गुणठाणे जीवो क्यारे नषण होय मारे अशाश्वता कया.
SR No.023509
Book TitleSiddhant Rahasya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Upadhyay
PublisherGangji Virji Shah
Publication Year1937
Total Pages248
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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