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________________ सिद्धांतरहस्य ॥६७॥ ३ चार मनना, चार वचनना ने १ कार्मण० ए९ होय. तेरमे गु० हेतु ७ ते १ सत्यमन०, २ व्यवहारम०, सत्यवचन०, ४ व्यवहारव० ५ उदा० ६ उदा० मिश्र ने ७ कार्मण० ए सात होय. चौदमे गु० हेतु नथी. २ दंडकद्वार कहे छेः - पहेलेगु० २४ दंडक. बीजे गु० ५ स्थावर सिवाय १९ दंडक वीजे, चोथे गु०, ३ विकलेंद्रिय सिवाय १६ दंडक पांच गु० संज्ञि तिर्यच ने संज्ञि मनुष्य ए वे दंडक छट्टाथी चौदमा सुधी संज्ञिमनुप्यनो १ दंडक होय. ३ जीव-योनिद्वार कहे छे:- पहेले गु० ८४ लाख जीव योनि. बीजे गु० ३२ लाख ते एकें द्रियनी ५२ लाख योनि वर्जवी. त्रीजे चोथे गु० छ लाख विकलेंद्रियना वर्जीने २६ लाख, पांचमे गु० १८ लाख ते ४ लाख तिर्यंच पंचेंद्रिय ने १४ लाख मनुष्यनी. छट्टाथी चौदमा गु० सुधी १४ लाख मनुष्यनी. ४ अंतरद्वार कहे छे: - पहेले गु० अंतर, ज० अंतर्मुहूर्त्तनुं अने उ० १३२ सागरोपम झाझेरुं, ते ६६ सागरोपम क्षयोपशम सम्यक्त्वमां रही अंतर्मुहूर्त न्रीजे गु० आवीने पाछो ६६ सागर क्षयोपशम सम्यक्त्वे रहीने मिथ्यात्व गुणठाणे आवे. बीजे गु० अंतर, ज० पल्योपमना असंख्यातमा भागनुं, उ० देशे उणा अर्द्धपुद्गल पराव १ एटलो काल क्षयोपशम सम्यक्त्वमां देवभवमां चोधुं गुणठाणु अने मनुष्यभवमां पांचमुं ने छहुं गुणठाणं पण होय. १३२ सागरोपम बाद अवश्य मोक्ष जाय, अथवा मिध्यात्वे आवे. अर्थात् एथी वधारे मिध्यात्वनुं अंतर नथी. २ सास्वादननुं परथोपमना असंख्यातमा भागथी न्यून (ओकुं) आंतरं न थाय. कारण ? सम्यक्त्वमोहनी ने मिश्र मोहनी, ए वे प्रकृतिने उवेली सत्तामांथी काढी ने २६ प्रकृतिनी सत्तावालो थाय; त्यारे तेनी 'उगलना' पल्योपमना असंख्यातमा भागथी न्यून होती नथी. विशेष जिज्ञासुए पंचसंग्रह टीकार्नु अवलोकन कर. द्वारवर्णन ॥६७॥
SR No.023509
Book TitleSiddhant Rahasya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Upadhyay
PublisherGangji Virji Shah
Publication Year1937
Total Pages248
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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