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________________ सिद्धांतरहस्य ॥६२॥ गुणठाणा | ॥६२॥ २ अविरति, ३ प्रमाद, ४ कषाय अने ५ योग. पहेले गुणठाणे पांच कारण होय. बीजे, श्रीजे, चोथे. गु०मिथ्यात्व सिवाय चार कारण, पांचमे गु०, पण कारण चार (एक त्रसकायनी अविरति टळी छे ११ अविरति रही छे.) छठे गु० ब्रण कारण प्रमाद, कषाय ने योग. सातमा गुल्थी दशमा गु० सुधी वे कारण-कषाय ने योग. इग्यारमाथी तेरमा सुधी एक योग होय. चौदमे गु० कारण कोइ नथीः तेरमो परिषहद्वार कहे छे:-पहेला गु०थी नवमा गु० सुधी २२ परिषह होय. (पण संवररूप तो छहाथीज गणाय ) एक जीव आश्रयी एकी साथे (युगवत्) २० परिषह होय. टाढनो परि० होय त्यां तापनो परि० न होय, अने चालवानो परि० होय. त्यां बेसवानो परि० न होय; तेमज बेसवानो त्यां चालवानो अने तापनो त्यां टाढनो न होय. दशमे इग्यारमे ने बारमे गुरु १४ परिषह होय. मोहनीय कर्मना आठ परिषहनो १ अचेलनो २ अरतिनो, ३ स्त्रीनो, ४ बेसवानो ५ आक्रोशनो, ६ याचनानो अने ७ सत्कार पुरस्कारनो ए सात चारित्र मोहना अने दर्शन मोहनीनो १ दर्शन परिषह, ए आठ न होय. एक समये बार होय, पूर्ववत् विरोधि बे परि० न होय. तेरमे चौदमे गु०, ११ परि० वेदनीय कर्मना होय. ज्ञानबरणीयना बे परी०,प्रज्ञा ने अज्ञान अने अंतराय कर्मनो १ अलाभ ए त्रण परि० न होय. एक समये नव होय पूर्ववत. चौदमो मार्गणाद्वारकहे छः-पहेले गुणठाणे मार्गणा ४ जीजे, चोथे, पांचमे ने सातमे जाय. धीजे गु० मार्गणा १ पडीने पहेले आवे, चडवू नथी, बीजे गु० मार्गणा ४ पडे तो पहेले, आवे ने चडेतो चोथे, , तत्वार्थमा एकी साथे १९ परीषहो कहेल . २ तत्वार्थमा अदर्शन प. कहेल के. ANGRAHASKAR
SR No.023509
Book TitleSiddhant Rahasya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Upadhyay
PublisherGangji Virji Shah
Publication Year1937
Total Pages248
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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