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________________ - सिद्धांतरहस्य - - - D MAOISTRI वर्जीने पांचनी करे, बारमे गु० पांचनी अथवा बेनी उदी० करे, पांचनी करे तो पूर्ववत् अने बेनी करे तो नाम ने गोत्र कर्मनी करे. तेरमे गु०, ना० ने गो० एबे कर्मनी उदी. करे. चौदमे गु० उदी० करे नहिं. दशमो निर्जरा गुणठाणा द्वार कहे छे:- पहेलाथी त्रीजा गु० सुधी अकाम निर्जरा छे. चोथाथी सकाम निर्जरा के पांचमाथी बारमा गुरु ॥६ ॥ सुधी बार प्रकारनी निर्जरा छे. तेरमे चौदमे गु० एक शुक्लध्यान रूपनिर्जरा छे. ११मो भावद्वार कहे छे:१ उदय भाव, २ उपशम भाव, ३क्षायकभाव, ४ क्षयोपशमभाव अने ५ पारिणामिकभाव (ए मूल पांच भावना उत्तर भेद ५३ थाय छे.) पहेले, बीजे ने बीजे गु०, ३ भाव उदय, क्षयोपशम ने पारिणामिक. चोथाथी सातमा गु० सुधी, ३ अथवा ४ भाव ते क्षयोपशम लमकितीने ३ भाव पूर्ववत् अने उपशम के क्षायक समकितवालाने चार भाव ते उप० समकितीने उप० भाव वध्यो अने क्षायक समवालाने क्षा० भाववध्यो. आठमे। गु० चार भाव होय ते पूर्वना त्रण भाव अने उप० वालाने उप० भाव अने क्षायकवालाने क्षायक भाव होय. नवमांथी इग्यारमा गुण. सुधी, क्षकश्रेणिवालाने उपशमभाव सिवाय चार भाव होय अने उपशाम श्रेणिवालाने उपशसमकित होय तो चार भाव होय अने जो क्षायकसम कित होय तो पांच भाव होय. बारमे गु० उपशम सिवाय चार भाव होय. तेरमे चौदमे गु० जण भाव होय उदय, क्षायक ने पारिणामिक. सिद्धमांचे भाव होय-क्षायक ने पारिणामिक. बारमो कारणद्वार कहे के कारण ते कर्मबंधना हेतुले पांच मिथ्यात्व १ पांच कारणना उत्तर भेद क्रमशः-५, १२, ५, २५, १५-७२ भेद छे. - - SANSADCASSALARIENYASHEEimamatara -
SR No.023509
Book TitleSiddhant Rahasya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Upadhyay
PublisherGangji Virji Shah
Publication Year1937
Total Pages248
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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