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________________ सिद्धांत रहस्य ॥५४॥ हनीय कर्मना उदयधी जीवनें कंइक मिथ्यात्व-अंश अने कंइक सम्यक्त्व - अंशरूप मिश्रण परिणाम थाय छे. अथवा नालियेर द्वीपमा रहेनार मनुष्यने जेम 'अन्न' उपर राग के द्वेष न होय तेमज जीवने जैन धर्म उपर राग के द्वेष न होय; तेने एक अंतरमुहूर्त्त कालमात्र स्थितिवाळु मिश्र गुणस्थान होय छे, ए गुणठाणे जीव परभवनुं आयु बांधे नहिं अने मरण पण करे नहि. हवे चोथा अविरति समकीतदृष्टि गुणस्थानना लक्षण कहे छे:-जे जीव, जिनेश्वरे प्ररूपेला नवतत्त्वने यथाशक्ति सद्दहे, पण अविरतिना उदयथी एक नवकारशी पञ्चक्खाण करी शके नहिं तेने अविरति समकितदृष्टिगु० कहीए. अनंतानुबंधी क्रोध, मान, माया, लोभ, मिथ्यात्वमोहनीय, मिश्रमोहनीय, अने समकीतमोहनीय ए सात प्रकृतिओना उपशमधी उपशम समकीत होय. मिथ्यात्वना दल जे उदयमां आवेल ते क्षय करे अने सत्तामां जे दल छे तेने उपशमावे तेने क्षयोपशमसमकित कहीए. अनें सात प्रकृतिओनो सर्वथा क्षय करे तेने क्षायिक समकीत कहेवाय. हवे पांचमा देशविरति गुणठाणाना लक्षण कहे छे:-जे जीव स्थूलाहिंसादिधी विरमीने अल्प पण 'विरतिपणुं, अंगीकार करे ते देशविरति कहेवाय. ए गुणठाणे अप्रत्याख्यानावरणीय कषायनो उदय होवाथी सर्व विरतीपणुं अंगीकार न करी शके. देशविरतिपणुं एक भवमां पृथक्त्व हजार वखत आवे अने सर्व संसार कालमां असंख्यातवार आवे. हवे छट्ठा प्रमत्त संयत गुणस्थानना लक्षण १ उपशम समकितीने मिथ्यात्वना दल, प्रदेशोदये के विपाकोदये पण न होय, क्षयोपशम समकितीने मिथ्यात्वना दल प्रदेशोदये होय भने बिपाकोदये सम्यक्त्वमोहनीयना दक्ष होय; तेथी क्षयोपसमकीतथी उपशम समकीत शुद्ध छे, अपौद्गलिक छे. गुणठाणा ॥५४॥
SR No.023509
Book TitleSiddhant Rahasya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Upadhyay
PublisherGangji Virji Shah
Publication Year1937
Total Pages248
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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