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________________ सिद्धांत समुद्घात स्व रुप ॥२२८॥ ॥२२८॥ ॐॐॐ सर्वथा रुंधन करे अने त्यारबाद सूक्ष्म पर्याप्त एकेंद्रियना ज० काययोगथी असंख्यात गुणहीन एवा काययोगर्नु ४ समये समये रुंधन करता थका असंख्यात समयोमा सर्वकाय योगर्नु रंधन करीने सिद्ध थाय छे. एम अनंत द केवलीओ के. समुद्घात करीने सिद्ध थया छे अने अनंत केवलीओ के. समुद्घात कर्या वगर पण सिद्धं थया छे. हवे क्या जीवोए क्यो समुद्घात केटलीवार करेल छे अने करशे ते कहे छे-पहेला पांच समु. ( वेदनीयथी तैजस पर्यंत ) सर्व जीवोए अनंतवार करेल छे अने भविष्यकालमां तो केटलाक लघुकर्मी जीवोने ते समु. | थवाना नथी ज्यारे केटलाकने तो एक बे अथवा अनेक थवाना छे केटलाकने संख्याता केटलाकने असंख्याता अने; केटलाक बहुलकर्मि जीवोने अनंत समु. पण धवाना होय छे. आ प्रमाणे अनुत्तर विमानना देवो सिवाय सर्व | दंडकमां समजवू. परंतु अनादि (सूक्ष्म ) निगोदना जीवो आश्रयी भूतकालमां आद्यत्रण समु० करेला होय छे अने भविष्यकाल आश्रयी तो प्रथमनी माफक जाणवू. आहारक समु. मनुष्य सिवायना अन्य जीवोए भूत| कालमा उत्कृष्टथी त्रजवार अनुभवेल होय छे अने केटलाक जीवोए मुद्दल पण न अनुभवेल होय; भविष्यकाल २ अहिं समजवान ए के के छ मास आयुष्य बाकी होय त्यारे जेमने केवलज्ञान उत्पन्न थाय तेओ अवश्य समु० करे अने बाकीना केवलीओ जो आयुष्यथी शेष व्रण को वधारे होय तो के. समु० करे अने आयुष्यथी समान को होय तो न पण करे. ३ आहारक समु० मनुष्यमा चौद पूर्वधरने होय ते पण आहारक लब्धिवालानेज, पण सर्व चौद पूर्वधरने न होय, ४ मनुष्य सिवाय अन्य गतिमा आहारक समु. चार वार ४ करेल न होय कारण ? चोथी वखत आहा० समु० करनार तेज भवमा अवश्य मोक्षे जाय एम पन्नवणा सूत्रनी टीकामां कहेलुं के बळी ग्रंथातरमा *कयु डे के-चत्तारियवाराओ, चउद्दस पूची करेइ आहार; संसारम्मि वसंता, इगजम्मे दुन्नीवाराओ. AHARASHTRA
SR No.023509
Book TitleSiddhant Rahasya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Upadhyay
PublisherGangji Virji Shah
Publication Year1937
Total Pages248
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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