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________________ सिद्धांत- रहस्य ॥२२७|| समुद्घात स्वरुप ॥२२७॥ | छे. पछी पांचमे समये आंतराने संहरे, छठे समये मंथानने संहरे, सातमे समये कपाटने संहरे अने आठमे समये दंडने संहरीने स्वशरीरमां स्थिर थाय; पछी एक अंतर्मुहूर्त बाद योगनिरोध करीने मोक्षे जाय. पहेला अने छेल्ला |समयमां केवलीने उदारिक योग होय छे. बीजा, छठा अने सातमा समयमां उदा. मिश्रयोग होय छे अने त्रीजा चोथा, पांचमा समयमां कार्मण योग होय छे. समुद्घातथी निवृत थइने केवली भगवान् त्रणे प्रकारना योगने खास प्रसंगे प्रवावे छे. ज्यारे अनुत्तर विमानना देवो, मनवडे कंइपण प्रश्न करे त्यारे केवली भगवान् मनोवर्गणाना पुद्गलो लइने मनपणे परिणमावीने मनोयोग वडे ते देवोने उत्तर आपे छे अने मनुष्यादिकना पृष्ट अपृष्ट संशयो टाळवा माटे बोलवू पडे छे आवे प्रसंगे वचनयोग प्रवर्तावे छे अने गमना | गमनादि क्रियामां तेमज पद्दपीठ फलक आदि पाछा सोंपवा होय त्यारे काययोगनी प्रवृत्ति करे छे. छेवटे त्रण योगना रुंधननो क्रम आ प्रमाणे छे-पर्याप्त संज्ञी पंचेंद्रियना मनोयोगथी असंख्यात गुणहीन एवा मनोयोगने समये समये रुंधन करतां असंख्यात समयोमा मनो योगर्नु सर्वथा रंधन करे, पछी पर्याप्त बे इंद्रियना जघन्य | वचनयोगथी असंख्यात गुणहीन एवा वचन योगने समये समये रंधन करतां असंख्याता समयोमां वचनयोगर्नु १ सत्य मनोयोग अने असत्यामषा [व्यवहार ] मनो०, सत्य अने असत्या मुषा वचन योग अने उ. काययोग, २ कोइ एम कहे छे के | छ मास आयुष्य बाकी रहे त्यारे केवली समुद्घात करे, ते अयुक्त छे. जो तेमज होय तो पट्ट आदिकनुं पुन: ग्रहण संभवे परंतु सिद्धांतमा तो पाछा सोपवानुज कहेल छे. विशेष जिज्ञासुए पनवणाना छेल्ला पदनी वृत्ति जोवी. .
SR No.023509
Book TitleSiddhant Rahasya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Upadhyay
PublisherGangji Virji Shah
Publication Year1937
Total Pages248
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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