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________________ रद्धांत रहस्य ११९४॥ सागरती. यादर अपर्याप्तनी स्थिति, ज.-उ० अंतर्मुहत्तनी. बादर पर्याप्तनी ज. अंतर्मु अने उ. शतपृथक्त्व सागर अधिकनी बा० पर्या० पृथवीका. अने अपकानी स्थिति, ज. अंतर्मु. अने उ० संख्याता हजार वर्षनी. कायस्थिति या पर्याः तेउका नी ज. अंतर्मु. अने उ० संख्याता दिवसनी. बादर वायुका०, बा. वनस्पतिका-प्रत्येक ॐा विचार & ॥१९४॥ वनस्पतिका पर्याप्तनी ज. अंतर्मु. अने उ• संख्याता वर्ष हजारनी. निगोद पर्याप्त अने बादर निगोद पर्यानी ज. अने उ. अंतर्मुहर्तनी बा. सका. पर्यानी ज. अंतर्मु. अने उ० शतपृथक्त्व सागर अधिकनी. ५ स. योगी बे प्रकारना छः-१ अनादि-अनंत अने २ अनादि-सांत. मनयोगी अने वचनयोगीनी स्थिति, ज. एक ममय अने उ० अंतर्मुनी. काययोगीनी ज० अंतर्मु. अने उ० वनस्पति-कालनी. अयोगीनी सादि-अनंतस्थिति. ६ सवेदीना त्रण प्रकार:-१ अनादि-अनंत, २ अनादि-सांत अने ३ सादि-सांत. तेमां सादि-सांतनी स्थिति, ज० अंतर्मु० अने उ. अर्द्धपुद्गल-परावर्तकालनी. स्त्री वेदनी स्थितिना पांच आदेश छे, ते कहे छे:पहेला आदेशथी ज० एक समयनी अने उ० एकशो दश पल्य अधिक पूर्व कोटी पृथक्त्ववर्षनी. बीजा आदेशथी ज. एक समयनी अने उ० पूर्वकोटी अधिक १८ पल्यनी. बीजा आदेशथी ज० एकसनी अने उ० पूर्व कोटी पृथक्त्व अधिक चौद पल्यनी. चोथा आदेशथी ज० एकस नी अने उ. पूर्व कोटी पृथक्त्व अधिक एकशो २ सादिसांत ते उपशम श्रेणिने प्राप्त करी अवेदी थाय पुनः सवेदी थइने अंतर्मुहूर्ते उपशम श्रेणि प्राप्त करी अवेदी थाय ए सैद्धांतिकमते अने कामग्रंथिक मतानुसारे अंतर्मु०मा क्षपक श्रेणि प्राप्त करी अवेदी पण थाय. उ० थी तो अर्द्धपुद्गल परावर्त्तमा अवश्य मोक्ष जाय. ३ कथन अधवा मतभेद. RAKARANA
SR No.023509
Book TitleSiddhant Rahasya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Upadhyay
PublisherGangji Virji Shah
Publication Year1937
Total Pages248
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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