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________________ सिद्धांत रहस्य ॥१९३॥ दिवसनी पर्या० वायुका० नी ज० अंतर्मु० अनें उ० संख्याता वर्ष हजारनी. पर्या० वनस्पतिका० नी ज० अंतर्मु० अने उ० संख्याता वर्ष हजारनी. पर्या० त्रसका० नी ज० अंतर्मु० अने उ० सागर शतपृथक्त्व झाझेरी. सूक्ष्मनी स्थिति, ज० अंतर्मु० अने उ० असंख्यातो काल-कालथी असंख्याता कालचक्रनी. क्षेत्रथी असंख्यात लोकप्रमाण. सूक्ष्मपृथवीका०, अपूका०, तेउका०, वायुका०, वनस्पतिका०, अने सूक्ष्मनिगोदनी स्थिति, ज० अंतर्मु० अने उ० असंख्याता कालनी, सूक्ष्म अपर्या० पृथ्वीका० थी यावत् सूक्ष्म वनस्पतिका० नी स्थिति, ज० उ० अंतर्मुहूर्तनी सूक्ष्म पर्याप्त पृथ्वी आदि पांचनी पण एमज जाणवी. बादरनी स्थिति, ज० अंतर्मु० अने उ० असंख्याता कालनी - कालथी असंख्याता कालचक्रनी, क्षेत्रथी अंगुलना असंख्यातमा भाग प्रमाण यादर पृथ्वीकायिक आदि चारनी स्थिति, ज० अंतर्मु अने उ० ७० कोडाकोडी सागरनी. बादर वनस्पतिका० नी ज० अंतर्मु० अने उ० असंख्याता कालनी - कालथी असंख्यात कालचक्रनी, क्षेत्रथी अंगुलना असंख्यातमा भाग प्रमाणनी. प्रत्येक बा० वनस्पति का० नी स्थिति, ज० अंतर्मु० अने उ० ७० कोडाकोडी सागरनी. निगोदनी स्थिति, ज० अंतर्मु० अने उ० अनंतकालनी. क्षेत्रथी अढीपुद्गल परावर्त्तकालनी. बादर निगोदनी ज० अंतर्मु० अने उ० ७० कोडाकोडी सागरनी. बादरत्रसका नी ज० अंतर्मु० अने उ० संख्याता हजार वर्ष अधिक वे हजार २ अंगुलना असंख्यातमा भाग क्षेत्रमा जेटला आकाश प्रदेशो होय तेने प्रति समये अपहरतां ते प्रदेशो जेटले काले खाली थाय. ते काल अवपाती उत्सर्पिणी अवसर्पिणी प्रमाण धाय कारण? कालश्री क्षेत्र सूक्ष्म होय छे. कायस्थिति विचार ||॥१९३॥
SR No.023509
Book TitleSiddhant Rahasya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Upadhyay
PublisherGangji Virji Shah
Publication Year1937
Total Pages248
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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