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________________ सिद्धांत रहस्य ॥१६८॥ पालाने स्पर्शी अने अस्पर्शी रहेला आकाश प्रदेशोमांधी एकेक प्रदेशने समये समये काढतां जेटले वखते, ते | पालो खाली धाय तेटला कालने सूक्ष्म क्षेत्र पल्यो० कहीएं, तेवा दश कोटीकोटी पल्योपमें सू० क्षेत्र सागरोपम थाय आ सू० क्षेत्र पत्योपम अने सागरोपमनो उपयोग, द्रव्य प्रनाग संबंधी विचारणाने प्रसंगे दृष्टिवादमां करवामां आवे छे; अर्थात् एनो दृष्टिंवादमां काम पडे छे. इति प्रमाण बोध समाप्त. श्रीसिद्धांत - मानविचार - १ आचारांग सूत्र, अध्ययन २८, मूल श्लोक संख्या २५००, नियुक्ति-श्लोक ४५० चूर्णी - श्लोक ८३००, टीका - श्लोक १२००० ॥ २ सूयगडांगसूत्र, अध्ययन २३, मूलश्लोक २१००, निर्युक्तिश्लोक २५०, चूर्णी - श्लोक १००००, टीका- श्लोक १२८५० ॥ ठाणांगसूत्र, अध्य० १०, मृ० ३७७०, टीका १५२५० ४ समवायांगसूत्र, मू० १६६७, चूर्णी ४००, टीका ३७७६ ॥ ५ व्याख्यापन्नती ( भगवती ) सूत्र, शतक ४१, मू० १५७५२, चूर्णी ४०००, टीका १८६१६ ॥ ६ ज्ञाता धर्मकथांगसूत्र, अध्य० १९, मू० ५५००, टीका ४२५२ ॥ ७ उपाशक दशांगसूत्र, अध्य० १०, मू० ८१२, टीका ९०० ॥ ८ अंतगडद्दशांगसूत्र, अध्य० ९०, मू० ७९०, टीका ३०० ॥ ९ अनुत्तरोववाइसूत्र, अध्य० ३३, मू० २९२, टीका १०० ॥। १० प्रश्नव्याकरणसूत्र, अध्य० १०, मू० २ सूक्ष्म क्षेत्र पश्योपनना विचारमां बालाना असात खंड करवानी जरूर जणाती नथी. कारण ? अस्पर्शेल आकाश प्रदेश ग्रहण करायेल छे, छतां जूनी उपायेल प्रतोमां खंड करवानुं लखेल छे. ३ पंच संग्रहमां जीवोना प्रमाणनी संख्या नाटे क्षेत्र पस्योपम लीधुं छे. आवश्यकम पण सामायिकना स्वरुपमां श्रुत, समकित देश विरतिना आकर्षमां नुं प्रयोजन बतावेल छे. सिद्धांत मानविचार ॥१६८॥
SR No.023509
Book TitleSiddhant Rahasya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Upadhyay
PublisherGangji Virji Shah
Publication Year1937
Total Pages248
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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