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________________ सिद्धांतरहस्य ॥१६७॥ ए असंख्याता समयोनुं जाणवू. एवा दश कोडाकोडी पल्योपमें सूक्ष्म उद्धार सागरोपम थाय. आ पल्यो० ने मानो सागरो थी द्वीप अने समुद्रनुं मान थाय छे. अढी सागरोना अथवा पचीश कोडाकोडी पल्योना जेटला विचार समयो थाय तेटला द्वीप समुद्रो छे. अर्थात् असंख्याता द्वीप-समुद्रो छे. आजंबूद्वीप, एक लाख योजननो लांबो-18|॥१६७॥ पहोळो छे, एम अनुक्रमें बमणा करतां छेल्लो स्वयंभूरमण समुद्र, अर्द्धरज्जु (राज)नो लांबो-पहोळो छे. हवे अद्धापल्योपमनु स्वरुप कहे छे:-पूर्वनी जेम पालो, युगलियाना बाळाग्रथी भरीए अने शो शो वर्षे एकेक वालाग्र | काढतां जेटले काले खाली थाय तेटला कालने बा अद्धा पल्यो. कहीएं, ते संख्यात कोटी वर्षनुं धाय के एवा दश कोडाकोडी पल्योपमें बा० अद्धा सागरोपम थाय. एपण प्ररुपणा मात्र छे एनुं कांइ प्रयोजन नथी. हवे | सूक्ष्म अनुं स्वरूप कहे छे:-पूर्ववत् वालाग्रोना एकेकना असंख्यात खंड करीने पूर्ववत् भरीए तेमांधी सो सो वर्षे एकेक खंड काढतां जेटले काले ते खाली थाय; तेटला कालने सूक्ष्म अद्धा पल्यो० कहे छे. एवा दश कोटीकोटी पल्योपमें सू० अद्धा सागरो. थाय. आ सू० अद्धा पल्यो. अने सागरोल्थी नारक प्रमुग्वना आयुष्यो, कर्मनी स्थिति अने पृथवीकायिक आदि जीवोनी कायस्थिति मपाय छे. हवे क्षेत्र पल्योपमनुं स्वरूप कहे छ:पूर्वोक्त रीतिए भरेल पालाने स्पर्शीने रहेला आकाश प्रदेशोमांथी एकेक प्रदेशनो समये समये आकर्षण करतां जेटले काले ते पालो खाली थाय; तेटला कालने बा० क्षेत्र पल्योपम कहीएं, तेवा दश कोडाकोडी पल्योपमें बा. क्षेत्र सागरोपम थाय. तेमा असंख्याता कालचक्रो जाय छे; ते पण निष्प्रयोजन छे. पूर्वनीपरे भरेल
SR No.023509
Book TitleSiddhant Rahasya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Upadhyay
PublisherGangji Virji Shah
Publication Year1937
Total Pages248
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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