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________________ सिद्धांत पद्व्य विचार रहस्य ॥१४९॥ ॥१४९॥ 公众众众众%%%令%*%*%交 &ापोतपोताना स्वभावना कर्ता छे. व्यवहारनयथी एक जीवद्रव्य कर्ता छे अने शेष पांच द्रव्यो अकर्ता छे. कारण? जीवद्रव्यना असंख्यात प्रदेशोनु चक्र, एक सामटुं फरे छ; अर्थात् बधा प्रदेशो मलीने (एक पिंडरूपे) काम करे छे. शेष पांच जडद्रव्योना प्रदेशोनी प्रवृत्ति, समुहात्मक नथी पण जूदी नदी छे; माटे पांचे द्रव्यो अकर्ता छे. छ द्रव्योमा एक आकाशद्र०, सर्वव्यापी छे-लोकालोक व्यापक छे अने शेष पांच द्रव्यो असर्वगत (लोक मात्र व्यापी छे, जोके छए द्रव्यो एक क्षेत्रमा साथे रहे छे. तो पण कोइ द्रव्य पोताथी भिन्न द्रव्यमा भळी | |जतो नथी; अर्थात् पोतार्नु मूल स्वरूप छोडी ने अन्य द्रव्यरूपे परिणमे नहिं. हवे लक्षणादि भेदथी षद्रव्योन वर्णन करवामां आवे छेः-१ धर्मास्ति द्र०, कोने कहीए ? गतिमान् जीव अने पद्गल ने मीनने नीरनी जेम सहाय करवानो जे स्वभाव ते 'धर्म' प्रदेशो ते 'अस्ति' अने तेनो समुह ते 'काय' तेने 'धमास्तिकाय' कहीए. एमज स्थितिमान जीव-पुद्गलने स्थिर थवामां वृक्षनी छायानी जेम सहाय करनार ते 'अधर्मास्तिकाय. जीवपुद्गलने अवकाश आपवामां भीतमां खीलीनी जेम सहाय करनार ते 'आकाशास्तिकाय.' दीपकनी जेम स्वपर प्रकाशक ज्ञानवान् ते 'जीवास्तिकाय.'परमाणुं अने द्विप्रदेशथी यावत् अनंत प्रदेशात्मक ते 'पुदगलास्तिकाय' " पांच द्रव्यो 'अस्तिकाय' कहेवाय छे अने कालना प्रदेश न होवाथी ते 'अस्तिकाय' न कहेवाय. हवे पद्व्यना गुण-पर्याय कहे छे:-१ धमास्ति ना ४ गुणः-१ अरूपी,२ अचेतन,३ अक्रिय ४ चलन सहाय अने पर्याय पण ४ २ परसंयोगथी विभावनो का छे. ३ अस्ति ने कायनो अर्थ पूर्ववत् जागवो. परमाणुमा पण स्कंधनी योग्यता है. ५ दरक इग्यता चार गुणमा जे छेल्लो गुण छे ते असाधारण [मुख्य गुण छे.
SR No.023509
Book TitleSiddhant Rahasya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Upadhyay
PublisherGangji Virji Shah
Publication Year1937
Total Pages248
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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