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________________ सिद्धांतरहस्य ॥१४८॥ पद्रव्य विचार ॥१४८॥ * SHARABASE सहायरुप क्रिया करे छे, आकाशास्ति. द्र०, अवगाह-दानरुपक्रिया करे छे, काल द्र० वर्तनारुप क्रिया करे छे, पुद्गल द्र०, पूरण-गलनरुप क्रिया करे छे अने जीवद्र, उपयोगरूप क्रिया करे छे व्यवहारनयथी जीव अने पुद्गलद्र०, सदासक्रिय छे. निश्चयनयथी छए द्रव्यो, नित्य छे, कारण? मूल द्रव्यनी अपेक्षाए धूव छे. द्रव्यो पोताना स्वरुपने कोहकाले छोडतो नथी पण उत्पाद-व्यय वडे अनित्य छे. हवे व्यवहार नयथी जीव अने पुद्गलद्र, अनित्य छे अने शेष ४ द्रव्यो नित्य छे. जोके उत्पाद, व्यय अने धृवपणे सर्व द्रव्यो परिणमे छे; तथापि धर्मास्ति०, अधर्मास्ति. आकाशास्ति. अने काल, ए ४ द्रव्यो सदा अवस्थित (स्थिर) होवाथी नित्य छे. छ द्रव्योमा एक जीव द्रव्य अकारण छे अने शेष पांच द्रव्यो कारण (साधनरुप ) छे. केम के ए पांचे द्रव्यो जीव द्रव्यने उपभोगमां आवे छे-साधनरुप थाय छे. ते आ प्रमाणे-धर्मास्ति०, जीवने गति करवामां अधर्मास्ति स्थिर रहेवामां अने| आकाशास्ति अवकाश आपवामां सहाय करे छे. तेमज शुभवर्णादि विशिष्ट पुद्गल, जीवने उपभोगमां आवे छे अने काल,बाल यौवनादि अवस्था आपे छे.व ळी अनादि संसारी जीवनी भवस्थिति,परिपक्क थये छते अंतर्मुहूर्त कालमां सर्व कर्मनो क्षय करी मुक्तिमां जाय त्यां सिद्धावस्थामां पण अनंतकाल पर्यंत जीव आत्मिक अव्यावाध अनंत सुख विलसे छे माटे कालद्रव्य पण जीवने उपभोगमां आवे छे. पण एक जीवद्रव्य, कोई अन्य द्रव्योने उपभोगमा आवतो नथी माटे जीवद्रव्य, अकारण छे. छए द्रव्यो निश्चयनयथी का छे, कारण ? सर्व द्रव्यो,
SR No.023509
Book TitleSiddhant Rahasya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Upadhyay
PublisherGangji Virji Shah
Publication Year1937
Total Pages248
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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