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________________ ७६२ ] अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण का उद्देश्य केवल अलङ्कार-योजना का चमत्कार प्रदर्शित करना हो, वहां उपमा आदि सादृश्यमूलक अलङ्कार भी उक्तिवैचित्र्य मात्र की सृष्टि करते हुए पाठक के मन में कौतूहल ही जाग्रत करेंगे । सादृश्यमूलक अलङ्कार स्पष्टता, विस्तार, आश्चर्य, अन्विति, जिज्ञासा और कौतूहल; इन सभी मनोभावों की सृष्टि कर सकते हैं । यदि काव्य में रस रहे तो एक ही अलङ्कार विभिन्न रसों में सहायक बनकर तत्तत् मनोभावों को तीव्र करने में सहायक होता है । परस्पर विरोधी मनोभावों का उत्कर्ष भी एक ही अलङ्कार कर सकता है। इस दृष्टि से एक उत्प्रेक्षा के कुछ उदाहरण द्रष्टव्य हैं -प्रसाद ने श्रद्धा के सौन्दर्य का वर्णन करते हुए यह कल्पना की है-- नील परिधान बीच सुकुमार खुला था मृदुल अबखला अंग। खिला हो ज्यों बिजली का फूल मेघ वन बीच गुलावी रंग ।।' इसमें कल्पित उपमान सौन्दर्य-बोध को तीव्र बनाकर शृङ्गार की भावना को पुष्ट करता है। मनोभाव की कोमलता की-काव्यशास्त्र में प्रयुक्त पारिभाषिक शब्द में कहें तो चित्त की द्र ति की सृष्टि में उक्त उपमानयोजना सहायक है। लता भवन ते प्रगट भे तेहि अवसर दोउ भाइ । निकसे जन जुग बिमल बिधु जलद पटल विलगाइ ॥२ यह उत्प्रेक्षा भी सौन्दर्य-बोध को तीव्र करने में सहायक है और मन की कोमल अनुभूति को तीव्र करने में सहायक है । पर; ___ जानहु अगिनि के उठइ पहाड़ा."3 इस उत्प्रेक्षा में अग्निपर्वत की कल्पना मन को विस्मित करती है, उसे दीप्त करती है। मानहु सरोस भुअंग भामिनि विषम मांति निहारई ।। १. जयशङ्कर प्रसाद, कामायनी २. तुलसी, रामचरितमानस, बालकाण्ड ३. जायसी, पद्मावत ४. तुलसी, रामचरितमानस, अयोध्याकाण्ड
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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