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________________ ७१२ ] अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण मीलित की स्थिति की कल्पना आवश्यक है । इस आधार पर दोनों में बहुत थोड़ा भेद मानकर उद्योतकार ने दोनों को एक ही अलङ्कार माना है । " यह ठीक है कि उन्मीलित की कल्पना का आधार मीलित का स्वरूप है और उसकी पूर्वदशा भी मीलित की ही दशा है; पर उन्मीलित में मीलित से एक आगे की दशा की कल्पना की जाती है । जब थोड़े-थोड़े भेद से स्वतन्त्र अलङ्कारों की सत्ता स्वीकार की गयी है, तब मीलित और उन्मीलित के स्वभावगत कथित भेद के आधार पर दोनों की परस्पर स्वतन्त्र सत्ता स्वीकार करना उचित ही जान पड़ता है । मीलित और तद्गुण अलङ्कारसर्वस्वकार के अनुसार मीलित और तद्गुण का भेद यह है कि मीलित में वस्तु का रूप समान चिह्न वाली अन्य वस्तु के रूप में तिरोहित हो जाता है और तद्गुण में हीन गुण वाली वस्तु अपने गुण का त्याग कर अन्य वस्तु के गुण को 'ग्रहण करती है । दोनों की प्रकृति पर दृष्टि रखते हुए प्रदीपकार ने उनके पारस्परिक भेद के सम्बन्ध में कहा है कि मीलित में अन्य वस्तु से आच्छादित वस्तु का बोध होता है; पर तद्गुण में वस्तु अन्य वस्तु में तिरोहित नहीं होती, उससे अनाच्छादित रहकर ही उसके गुण को ग्रहण कर लेती है । 3 १. अत्राहुरुद्योतकाराः " स्फुटमुपलभ्यमानस्य कस्यचिद्वस्तुनो लिङ्ग रतिसाम्यात् भिन्नत्वेनागृह्यमाणानां वस्त्वन्तरलिङ्गानां स्वकारणानुमापकत्वं मीलितम् । एवं च 'हिमाद्रि त्वद्यशोमन्नं सुराः शीतेन जानते' इत्यादावपि इदमेव ( मीलितमेव ), शीतेन तज्ज्ञानेऽपि यशः साधारणलिङ्गः श्वत्यादिभिस्तदनुमानाभावात् शीतेन जानते इत्यनेनापि मीलनस्यैव दार्यं न त्वन्येनेति प्रतीतेः । एतेनात्रोन्मीलितं पृथगलङ्कार इति अपास्तम् ।" - काव्यप्रकाश, बालबोधिनी टीका, पृ० ७२८ २. न चेदं मीलितम् । तत्र हि प्रकृतं वस्तु वस्त्वन्तरेणाच्छादितत्वेन प्रतीयते । इह ( तद्गुणे) त्वनपह्न तस्वरूपमेव प्रकृतं वस्तु वस्त्वन्तरगुणोपरत्ततया प्रतीयत इत्यस्त्यनयोर्भेदः । —रुय्यक, अलङ्कारसर्वस्व, पृ० २११ ३. मीलिते वस्त्वन्तरेणाच्छादितस्य तस्यैव वस्तुनः प्रतीति:, अत्र ( तद्गुणे ) त्वनाच्छादित स्वरूपस्यैव वस्त्वन्तरगुणापत्तिरिति ततो भेद इति प्रदीपः । - काव्यप्रकाश, बालबोधिनी, पृ० ७४६
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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